दशहरे पर जलेबी खाने की परंपरा: धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

दशहरे पर जलेबी का महत्व

दशहरे पर जलेबी खाने की परंपरा
दशहरा का त्योहार: भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विजयादशमी (दशहरा) को अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण परंपरा है इस दिन जलेबी का सेवन करना। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस दिन जलेबी क्यों खाई जाती है? इसके पीछे केवल स्वाद नहीं, बल्कि गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ भी हैं।
जलेबी और शशकुली का संबंध
धार्मिक ग्रंथों और लोककथाओं में जलेबी को शशकुली कहा जाता है। मान्यता है कि यह व्यंजन भगवान राम को बहुत पसंद था। जब श्रीराम ने रावण का वध कर विजय प्राप्त की, तो अयोध्या लौटने पर उनकी इस जीत का जश्न मनाया गया। इस अवसर पर उन्हें प्रिय शशकुली यानी आज की जलेबी खिलाई गई। तभी से विजयादशमी पर जलेबी खाने की परंपरा जुड़ी हुई मानी जाती है।
विजय का मीठा प्रतीक
जलेबी का गोल आकार जीवन के चक्र और अनंतता का प्रतीक है। यह विजय के बाद मिलने वाली मिठास और समृद्धि का संकेत भी है। जब लोग दशहरे पर जलेबी का सेवन करते हैं, तो इसका भाव यह होता है कि बुराई पर जीत के बाद जीवन में मिठास, सौभाग्य और सुख-समृद्धि बनी रहे।
लोक मान्यता और स्वास्थ्य दृष्टिकोण
कुछ स्थानों पर यह मान्यता है कि दशहरे से सर्दियों की शुरुआत होती है। इस मौसम में मीठे और तले हुए व्यंजन खाने से शरीर को ऊर्जा और गर्माहट मिलती है। इसलिए भी दशहरे पर जलेबी खाने की परंपरा प्रचलित है।
नवरात्रि और दशहरे से जुड़ी मिठास
नवरात्रि के नौ दिनों तक भक्त साधना और संयम का पालन करते हैं। विजयादशमी यानी दशहरा उस तपस्या के समापन का प्रतीक है। इसलिए इस दिन मीठा खाकर खुशी और आनंद का उत्सव मनाया जाता है। जलेबी इस अवसर की सबसे खास और लोकप्रिय मिठाई बन गई है।
दशहरे पर जलेबी खाना केवल स्वाद या परंपरा नहीं है, बल्कि यह भगवान राम की विजय, जीवन में मिठास और ऊर्जा का प्रतीक भी है। यह परंपरा आज भी लोगों को याद दिलाती है कि जैसे श्रीराम ने बुराई पर विजय पाई, वैसे ही हमें भी अपने जीवन की नकारात्मकताओं को हराकर सुख और मिठास की ओर बढ़ना चाहिए।