दलाई लामा को भारत रत्न देने की मांग, पेमा खांडू का प्रस्ताव

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने दलाई लामा को भारत रत्न देने की सिफारिश की है। उन्होंने कहा कि दलाई लामा का तिब्बती बौद्ध धर्म में महत्वपूर्ण योगदान है और चीन का अगले दलाई लामा के चयन पर कोई अधिकार नहीं है। खांडू ने तिब्बती बौद्ध धर्म के विकास और इसके हिमालयी क्षेत्रों में फैलने के बारे में भी चर्चा की। जानें इस विषय पर उनके विचार और दलाई लामा के भारत में रहने के इतिहास के बारे में।
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दलाई लामा को भारत रत्न देने की मांग, पेमा खांडू का प्रस्ताव

दलाई लामा को भारत रत्न देने की सिफारिश

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने सुझाव दिया है कि दलाई लामा को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए। उन्होंने केंद्र सरकार को इस संबंध में पत्र लिखने की योजना बनाई है।


खांडू ने मंगलवार को एक साक्षात्कार में कहा कि अगले दलाई लामा के चयन पर चीन का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि तिब्बती बौद्ध धर्म का पालन मुख्य रूप से तिब्बत और भारत के हिमालयी क्षेत्रों में होता है, न कि चीन में।


जब उनसे दलाई लामा को भारत रत्न देने के लिए सांसदों के एक समूह के अभियान के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि दलाई लामा ने ‘नालंदा स्कूल ऑफ बुद्धिज्म’ का प्रचार किया है।


उन्होंने कहा, ‘‘आठवीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय से कई गुरु तिब्बत गए। उस समय तिब्बत में ‘बोन’ धर्म प्रचलित था। ‘बोन’ और ‘बौद्ध’ धर्म के मिलन से तिब्बती बौद्ध धर्म का विकास हुआ, जिससे बौद्ध धर्म पूरे तिब्बत में फैल गया।’’


खांडू ने यह भी कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म की अवधारणा हिमालय क्षेत्र में लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई है। चौदहवें दलाई लामा को 1959 में तिब्बत पर चीनी आक्रमण के बाद भारत में शरण लेनी पड़ी थी, और तब से वे धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश में अन्य निर्वासित तिब्बतियों के साथ रह रहे हैं।