दक्षिणा: पूजा का अभिन्न हिस्सा और इसका महत्व

दक्षिणा का अर्थ और महत्व
दक्षिणा का अर्थ है 'सत्कार या सम्मान स्वरूप दिया गया दान', जो ब्राह्मण के माध्यम से ईश्वर को अर्पित किया जाता है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि 'दक्षिणा ही यज्ञ का फल होती है' और इसके बिना यज्ञ अधूरा माना जाता है।
ब्राह्मणों को दक्षिणा देना एक पुण्य कार्य माना जाता है, क्योंकि वे वेद, शास्त्र, मंत्र और कर्मकांड के ज्ञाता होते हैं।
पुराणों में उल्लेख है कि बिना दक्षिणा के किए गए धार्मिक अनुष्ठान का फल नष्ट हो जाता है।
दक्षिणा का उद्देश्य और ब्राह्मणों की भूमिका
भारतीय धार्मिक परंपरा में पूजा, यज्ञ, कथा, श्राद्ध या संस्कार के अंत में ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है। यह परंपरा सदियों पुरानी है, लेकिन इसके पीछे का उद्देश्य क्या है? दक्षिणा का महत्व क्या है? इस लेख में हम इन सवालों का उत्तर जानेंगे।
दक्षिणा क्या है?
दक्षिणा संस्कृत शब्द 'दक्षिण' से निकला है, जिसका अर्थ है 'सत्कार या सम्मान स्वरूप दिया गया दान'। यह वह अर्पण है जो हम ब्राह्मण के माध्यम से ईश्वर को समर्पित करते हैं। मनुस्मृति में कहा गया है कि 'दक्षिणा ही यज्ञ का फल होती है। यदि दक्षिणा न दी जाए, तो यज्ञ अधूरा माना जाता है'।
ब्राह्मणों को दक्षिणा क्यों दी जाती है?
ब्राह्मणों को दक्षिणा देना पुण्य कार्य माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, ब्राह्मणों को निष्काम कर्म करना होता था और वे अपने कर्म के बदले फल की इच्छा नहीं कर सकते थे। प्राचीन काल में ब्राह्मण दक्षिणा पर निर्भर होते थे। वे ज्ञान, वेद, शास्त्र, मंत्र और कर्मकांड के ज्ञाता होते थे और समाज को शिक्षा देते थे।
दक्षिणा उनके धार्मिक श्रम और सेवा का सम्मान है। लोग अनुष्ठान के बदले भेंटस्वरूप उन्हें दक्षिणा देते थे, ताकि वे भी ब्राह्मण के सत्कर्म से ऋणमुक्त हो सकें। दक्षिणा देकर लोग अपने कर्म से भी मुक्त होना चाहते हैं। कुछ धार्मिक कार्यों में दक्षिणा के माध्यम से कर्म का फल ब्राह्मण को देकर व्यक्ति मोक्ष या शांति की कामना करता है।
दक्षिणा में क्या दिया जा सकता है?
प्राचीन समय में दक्षिणा में अन्न, गाय, वस्त्र, स्वर्ण, भूमि आदि दिया जाता था। लेकिन आजकल महंगाई के कारण थोड़ी धनराशि, वस्त्र, आभार और दक्षिणा राशि दी जाती है। ब्राह्मणों को कभी भी दक्षिणा का लालच नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें जो भी दिया जाए, उसे स्वीकार करना चाहिए।
क्या बिना दक्षिणा के पूजा अधूरी होती है?
पुराणों में कहा गया है कि बिना दक्षिणा के किए गए धार्मिक अनुष्ठान का फल नहीं मिलता, क्योंकि वह फल बलि के पेट में चला जाता है और नष्ट हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है, 'न दक्षिणा यज्ञः पूर्णः न भवति' यानी बिना दक्षिणा यज्ञ अपूर्ण रहता है। इसलिए, अनुष्ठान की पूर्णता के लिए दक्षिणा देना आवश्यक माना गया है।