दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक बदलाव: अराकान आर्मी का उदय

दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक परिदृश्य एक बार फिर बदलने की कगार पर है, जहाँ अराकान आर्मी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद, यह विद्रोही संगठन बांग्लादेश के लिए एक सुरक्षा संकट बन गया है। बांग्लादेश अब भारत की मदद की ओर देख रहा है, जबकि भारत के लिए यह एक चुनौती और अवसर दोनों है। क्या अराकान आर्मी एक नए देश की घोषणा करेगी? जानें इस जटिल स्थिति के पीछे की रणनीतियाँ और संभावनाएँ।
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दक्षिण एशिया का नया मोड़

इतिहास एक बार फिर एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, जहाँ दक्षिण एशिया का नक्शा स्थायी रूप से बदल सकता है। 1971 की घटनाएँ ताजा हो गई हैं, जब भारत के हस्तक्षेप से एक देश दो भागों में विभाजित हुआ और बांग्लादेश का निर्माण हुआ। आज, 50 साल बाद, एक नई कहानी उभर रही है, जिसमें मुख्य पात्र और स्थान दोनों भिन्न हैं। इस नई कहानी का नायक है अराकान आर्मी (AA), एक विद्रोही समूह जो न केवल अपनी स्वतंत्रता की मांग कर रहा है, बल्कि क्षेत्र की भू-राजनीति को भी प्रभावित करने की क्षमता रखता है।


सैन्य तख्तापलट और अराकान आर्मी का उदय

यह सब 2021 में म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट से शुरू हुआ। जैसे ही सेना ने सत्ता पर कब्जा किया, देश में अराजकता फैल गई और इसी स्थिति में अराकान आर्मी एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरी। वर्तमान में, म्यांमार के रखाइन प्रांत के 17 में से 14 जिलों पर अराकान आर्मी का नियंत्रण है, और उसने बांग्लादेश से सटी 271 किलोमीटर की सीमा पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है। यह संगठन अब एक नए राष्ट्र की घोषणा करने की योजना बना रहा है, जो 1971 के बाद दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा भू-राजनीतिक परिवर्तन होगा।


बांग्लादेश की चिंताएँ और भारत की भूमिका

अराकान आर्मी का उदय बांग्लादेश के लिए एक राष्ट्रीय सुरक्षा संकट बन गया है। रिपोर्टों के अनुसार, अराकान आर्मी के लड़ाके बांग्लादेश के कॉक्स बाजार और नाफ नदी के आसपास के क्षेत्रों में 100 किलोमीटर तक घुसपैठ कर चुके हैं। हालांकि ढाका सरकार इस स्थिति को स्वीकार नहीं कर रही है, लेकिन सैटेलाइट तस्वीरें और जमीनी हकीकत कुछ और ही संकेत दे रही हैं।


इस संकट ने बांग्लादेश को, जो हाल ही में भारत के प्रति नकारात्मक रुख अपनाए हुए था, अब भारत की मदद की ओर देखने के लिए मजबूर कर दिया है। बांग्लादेश ने तुर्की और पाकिस्तान से भी सहायता मांगी, लेकिन दोनों देश अपने आंतरिक संकटों में उलझे हुए हैं। ऐसे में बांग्लादेश के पास भारत के साथ मिलकर इस समस्या का समाधान निकालने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।


भारत की चुनौती और अवसर

भारत इस समय एक जटिल कूटनीतिक स्थिति में है। एक ओर, रखाइन में चल रहे संघर्ष के कारण हजारों रोहिंग्या शरणार्थियों के भारत में घुसने का खतरा है, जबकि दूसरी ओर, एक बड़ा रणनीतिक अवसर भी मौजूद है।



  • अरबों का निवेश दांव पर: भारत ने म्यांमार के सितवे पोर्ट में अरबों डॉलर का निवेश किया है, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को समुद्र से जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण है। रखाइन प्रांत अब अराकान आर्मी के नियंत्रण में है, इसलिए इस पोर्ट का भविष्य भारत और अराकान आर्मी के संबंधों पर निर्भर करेगा।

  • चीन को घेरने का मौका: चीन ने म्यांमार की सेना का समर्थन किया है ताकि वह रखाइन में स्थित क्याउक्फ्यू पोर्ट के जरिए बंगाल की खाड़ी तक अपनी पहुंच बना सके। यदि भारत समय पर अराकान आर्मी के साथ मजबूत संबंध स्थापित कर लेता है, तो वह न केवल अपने सितवे पोर्ट को सुरक्षित कर सकता है, बल्कि इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी रोक सकता है।

  • भारत का साइलेंट मिशन: रिपोर्टों के अनुसार, भारत ने स्थिति का आकलन करने के लिए एक गुप्त मिशन म्यांमार और अराकान क्षेत्र में भेजा है। भारतीय नौसेना ने भी बंगाल की खाड़ी में अपने युद्धपोत INS किलटान और INS कमोर्टा को तैनात कर दिया है। यह एक स्पष्ट संकेत है कि भारत अब केवल दर्शक नहीं रहेगा।


चीन और अमेरिका की भूमिका

यह संघर्ष केवल म्यांमार या बांग्लादेश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा 'ग्रेट गेम' बन चुका है, जिसमें वैश्विक शक्तियाँ शामिल हैं।



  • चीन: वह म्यांमार की सैन्य सरकार का समर्थन कर रहा है ताकि भारत को इस क्षेत्र से बाहर रखा जा सके और अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को सुरक्षित किया जा सके।

  • अमेरिका: कुछ साल पहले अमेरिका ने एक 'रीजनल बैलेंस प्लान' का प्रस्ताव दिया था, जिसमें म्यांमार और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों को मिलाकर एक नया देश बनाने की बात थी, ताकि चीन और भारत दोनों को कमजोर किया जा सके। मौजूदा हालात को देखते हुए, यह पुरानी योजना फिर से सक्रिय हो सकती है।


क्या एक नया देश बनेगा?

अराकान आर्मी के प्रमुख, तुन म्यात नाइंग, ने एक वीडियो बयान में कहा है कि 'हम भारत का सम्मान करते हैं और अगर भारत चाहे तो हम उसके दोस्त बन सकते हैं।' यह बयान भारत के लिए एक खुला निमंत्रण है। अराकान आर्मी अब अपना झंडा, संविधान और सरकार बनाने की तैयारी कर रही है।


भारत की खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, अराकान आर्मी अगले 6 महीनों में म्यांमार और बांग्लादेश के बीच का पूरा दक्षिणी इलाका अपने कब्जे में ले सकती है। यदि ऐसा होता है, तो बंगाल की खाड़ी पर एक नया देश उभर सकता है। भारत ने सावधानी बरतते हुए अराकान आर्मी से सीमित संपर्क बनाए रखा है, ताकि यदि नया देश बने, तो वह भारत का मित्र हो, दुश्मन नहीं।


इतिहास ने एक बार फिर भारत को एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा कर दिया है। 1971 में बंदूक के बल पर एक नया देश बना था, लेकिन 2025 में यह लड़ाई रणनीति और कूटनीति के स्तर पर लड़ी जाएगी। भारत का एक सही कदम उसे दक्षिण एशिया में एक नया और विश्वसनीय साथी दे सकता है, जबकि एक गलत कदम पूरे क्षेत्र को दशकों तक अस्थिरता की आग में झोंक सकता है।