तेजस्वी यादव की राघोपुर सीट पर चुनावी चुनौतियाँ

तेजस्वी यादव का राघोपुर सीट पर चुनावी संघर्ष कई चुनौतियों से भरा हुआ है। राहुल गांधी और मुकेश सहनी जैसे नेताओं का प्रभाव उनकी स्थिति को कमजोर कर रहा है। इस लेख में जानें कि कैसे ये राजनीतिक समीकरण तेजस्वी यादव के लिए मुश्किलें पैदा कर रहे हैं और उनके चुनावी भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं।
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राघोपुर सीट का चुनावी परिदृश्य

नई दिल्ली। तेजस्वी यादव ने राघोपुर सीट पर चुनावी संघर्ष को लेकर कभी भी वैसा नहीं सोचा होगा, जैसा राहुल गांधी ने 2019 में अमेठी की हार के संदर्भ में किया था। अमेठी कांग्रेस और गांधी परिवार का गढ़ रहा है, ठीक उसी तरह राघोपुर आरजेडी और लालू परिवार का मजबूत किला है। राहुल गांधी के माता-पिता सोनिया गांधी और राजीव गांधी ने अमेठी का प्रतिनिधित्व किया है, जबकि तेजस्वी यादव के माता-पिता राबड़ी देवी और लालू यादव भी राघोपुर के विधायक रह चुके हैं।


बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन तेजस्वी यादव की स्थिति को प्रभावित करने में राहुल गांधी का योगदान कम नहीं रहा। इसके अलावा, मुकेश सहनी का भी इस स्थिति में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।


राहुल गांधी और मुकेश सहनी के अलावा, तेजस्वी यादव पर घर के झगड़े का भी असर पड़ा है। पिछले तीन वर्षों से बिहार में चलाए जा रहे 'नौवीं फेल' अभियान ने भी उन्हें नुकसान पहुँचाया है। यह सब कुछ लालू यादव की उपस्थिति में हुआ है।


राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा में उनकी सक्रियता और तेजस्वी यादव की पीछे रहकर चलने की स्थिति, लालू यादव के लिए सहन करना कठिन हो रहा होगा। फिर भी, उन्होंने चुप्पी साधे रखी।


तेजस्वी यादव को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने में लालू यादव ने राहुल गांधी के मुंह से यह बात कहलवाने का प्रयास किया। राहुल गांधी ने बिहार में चुनावी अभियान के दौरान कई बार तेजस्वी यादव के खिलाफ बयान दिए।


मुकेश सहनी महागठबंधन में ऐसे नेता रहे हैं, जो पहले सबसे अधिक लाभ में दिख रहे थे। तेजस्वी यादव का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित होना आवश्यक था, लेकिन उनकी पार्टी का चुनावी प्रदर्शन निराशाजनक रहा।


प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव की जड़ों को कमजोर करने का काम तीन साल पहले शुरू किया था। उन्होंने तेजस्वी को 'नौवीं फेल' कहकर संबोधित किया। हालांकि, प्रशांत किशोर को भी इस दौरान कोई खास सफलता नहीं मिली।


तेज प्रताप यादव ने चुनावी संघर्ष में तेजस्वी यादव को हल्के में लिया, लेकिन चुनाव हारने के बाद भी वे छोटे भाई पर भारी पड़े हैं। राघोपुर का चुनावी संघर्ष तेजस्वी यादव के लिए एक महत्वपूर्ण अनुभव बन गया है।