तुलसी विवाह 2025: दीप जलाने का सही तरीका और दिशा

तुलसी विवाह 2025 का पर्व दिव्य मिलन और पवित्रता का प्रतीक है। इस दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह धार्मिक विधि से संपन्न होता है। दीप जलाने का विशेष महत्व है, जो जीवन में सकारात्मकता और सुख लाता है। जानें इस पर्व पर दीप जलाने की सही विधि और दिशा, साथ ही दीपदान का धार्मिक अर्थ।
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तुलसी विवाह 2025: दीप जलाने का सही तरीका और दिशा

तुलसी विवाह का महत्व

तुलसी विवाह 2025: दीप जलाने का सही तरीका और दिशा

तुलसी विवाह 2025

तुलसी विवाह का पर्व एक दिव्य मिलन और पवित्रता का प्रतीक है। यह पर्व कार्तिक शुक्ल द्वादशी को मनाया जाता है, जो सृष्टि में शुभता और समृद्धि के पुनर्जागरण का प्रतीक माना जाता है। इस दिन माता तुलसी, जो लक्ष्मी का रूप मानी जाती हैं, और भगवान शालिग्राम, जो विष्णु के अवतार हैं, का विवाह धार्मिक विधि से संपन्न होता है।

इस अवसर पर दीपदान का विशेष महत्व है, क्योंकि दीपक ज्ञान, धर्म और प्रकाश का प्रतीक होता है। दीप जलाने से जीवन में अंधकार मिटता है और घर में सुख, शांति तथा देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। इस वर्ष द्वादशी तिथि 2 नवंबर को सुबह 07:31 बजे से शुरू होकर 3 नवंबर को 05:07 बजे समाप्त होगी।


दीपदान का धार्मिक महत्व

दीप जलाने का अर्थ

दीप जलाना केवल पूजा की औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है। तुलसी विवाह के समय दीपदान का अर्थ है जीवन में नकारात्मकता, अज्ञान और दुख के अंधकार को मिटाकर ज्ञान, प्रेम और शुभता के प्रकाश का स्वागत करना।

धर्मग्रंथों के अनुसार, तुलसी विवाह के दिन जलाया गया दीपक पूरे वर्ष घर में सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखता है। यह घर में लक्ष्मी कृपा, धन-लाभ और वैवाहिक सुख का संचार करता है। तुलसी माता स्वयं लक्ष्मी का रूप हैं, इसलिए दीप जलाकर उन्हें प्रसन्न करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती है।


दीपदान की विधि और दिशा

पूजा की दिशा

तुलसी विवाह के समय पूजा पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। पूर्व दिशा सूर्यदेव और भगवान विष्णु की दिशा मानी जाती है, जो जीवन में ज्ञान, प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक है। तुलसी चौरा (तुलसी का स्थान) के सामने एक या चार दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना गया है। दीपक में शुद्ध घी का प्रयोग सर्वोत्तम है; यदि घी उपलब्ध न हो तो तिल के तेल का दीप भी पवित्र माना जाता है। दीप जलाते समय भक्तों को यह पवित्र मंत्र बोलना चाहिए: दीपो ज्योति: परं ब्रह्म, दीपो ज्योति: जनार्दनः। अर्थात् दीपक स्वयं परम ब्रह्म और भगवान विष्णु का स्वरूप है।