ताज बेगम: अकबर की कृष्ण भक्त पत्नी की अनकही कहानी

ताज बेगम, मुगल बादशाह अकबर की पत्नी, एक अद्भुत कृष्ण भक्त थीं। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि उन्होंने कुरान और नमाज को भुला दिया। जानें उनके जीवन की अनकही कहानी, जिसमें उन्होंने कृष्ण की भक्ति में अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। उनकी समाधि आज भी वृंदावन में स्थित है, जहां उनकी भक्ति की गूंज सुनाई देती है।
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ताज बेगम की अद्भुत भक्ति

मुगल सम्राट अकबर की लगभग 300 पत्नियों में से केवल 36 को शाही दर्जा प्राप्त था, जबकि अन्य को सामान्य जीवन जीना पड़ता था। अकबर की प्रमुख पत्नियों में रुकैया सुल्तान बेगम, सलीमा सुल्तान बेगम और जोधा बाई का नाम शामिल है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अकबर की एक बेगम ऐसी थीं, जो मुस्लिम होते हुए भी भगवान कृष्ण की गहरी भक्त थीं? उनका नाम था ताज बेगम, जिन्हें ताज बीबी भी कहा जाता है। उनकी कृष्ण भक्ति इस कदर गहरी थी कि उन्होंने कुरान और नमाज को भी भुला दिया था। आइए, ताज बेगम की कृष्ण भक्ति के बारे में विस्तार से जानते हैं।


ताज बीबी का परिचय

ताज बीबी, जो मुगल बादशाह अकबर की पत्नी थीं, 17वीं सदी की एक महान कृष्ण भक्त थीं। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय वृंदावन और गोकुल में कृष्ण की भक्ति में बिताया। ताज बीबी ने कृष्ण भक्ति पर कई पद और कविताएँ लिखीं। उनके बारे में कहा जाता है कि वे बचपन से ही कृष्ण के प्रति अत्यधिक आकर्षित थीं, जिससे उन्होंने कुरान और नमाज को भुलाकर कृष्ण के भजन गाने शुरू कर दिए।


कृष्ण भक्त बनने की यात्रा

ताज बेगम का जन्म 17वीं सदी में हुआ था और वे महावन के किलेदार पद्न खान की संतान थीं। एक बार जब वे अकबर के साथ गोवर्धन गईं, तो उनकी मुलाकात श्री विट्ठलनाथ जी से हुई, जिसने उनके दिल में कृष्ण के प्रति प्रेम का संचार किया। इसके बाद, ताज बेगम वृंदावन में बस गईं और भगवान श्री कृष्ण की अनन्य भक्त बन गईं। उन्होंने कृष्ण भक्ति के कई पद लिखे और गाए।


ताज बेगम की समाधि

कृष्ण की भक्ति में लीन रहने के कारण ताज बेगम को मुस्लिम समाज में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कृष्ण को अपना स्वामी मान लिया। कहा जाता है कि अकबर की मृत्यु के बाद, ताज बेगम ने कृष्ण की भक्ति का मार्ग अपनाया। उन्होंने गोस्वामी विट्ठलनाथ जी से दीक्षा ली और कृष्ण की भक्ति में कई पद और भजन लिखे, जो आज भी गाए जाते हैं। उनकी समाधि वृंदावन के गोकुल में रमन रेती आश्रम के पास स्थित है।


ताज बेगम का हिंदुस्तानी पहचान

श्री कृष्ण की अनन्य भक्त बनने के बाद, ताज बेगम ने हिंदुस्तानी पहचान को अपनाने का निर्णय लिया। उन्होंने मुस्लिम समाज की परवाह किए बिना, श्री कृष्ण की भक्ति और उनकी लीलाओं के प्रति अपनी गहरी आस्था व्यक्त की। उनकी समाधि के पास एक सवैया पत्थर पर लिखा है – 'हौं तो तुर्कानी पै हिंदुआनी ह्वै रहूंगी मैं!' यानी वे मुगलानी होते हुए भी हिंदुस्तानी बनकर रहना चाहती थीं।