डोडा स्कूल में बच्चों द्वारा विवादास्पद गीत गाने से प्रशासन में हड़कंप

जम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले के एक सरकारी स्कूल में बच्चों द्वारा गाए गए आक्रामक गीतों का वीडियो वायरल होने के बाद प्रशासन में हड़कंप मच गया है। शिक्षा विभाग ने तुरंत कार्रवाई करते हुए एक जांच समिति का गठन किया है। इस घटना ने न केवल प्रशासन बल्कि समाज में भी चिंता की लहर पैदा कर दी है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता की शिकायत के बाद यह कार्रवाई की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि बच्चों को कट्टरपंथी विचारधारा से भरे गीत सिखाए जा रहे हैं। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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डोडा स्कूल में बच्चों द्वारा विवादास्पद गीत गाने से प्रशासन में हड़कंप

डोडा ज़िले के सरकारी स्कूल में विवाद

जम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले के एक सरकारी विद्यालय में प्रार्थना सभा के दौरान बच्चों द्वारा गाए गए आक्रामक गीतों के एक वीडियो ने प्रशासन को चौंका दिया है। इस वायरल वीडियो में एक शिक्षक प्रार्थना सभा का संचालन करते हुए नजर आ रहे हैं, जबकि छोटे बच्चे सामूहिक रूप से 'खून से तिलक करो, गोलियों से आरती' जैसे गीत गा रहे हैं। जैसे ही यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, शिक्षा विभाग ने तुरंत कार्रवाई की और एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया। समिति से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी गई है और जांच पूरी होने तक संबंधित शिक्षक का वेतन रोकने के आदेश भी जारी किए गए हैं।


सामाजिक कार्यकर्ता की शिकायत पर कार्रवाई

यह कार्रवाई स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता राजा शकील की शिकायत के बाद की गई, जिन्होंने आरोप लगाया कि बच्चों को कट्टरपंथी और हिंसक विचारधारा से भरे गीत सिखाए जा रहे हैं। मुख्य शिक्षा अधिकारी (सीईओ) डोडा, इकबाल हुसैन ने एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि सरकारी मध्य विद्यालय, सिचल के छात्रों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया है, जिसमें बच्चे एक ऐसा गीत गा रहे हैं जो नाबालिगों के लिए अनुचित है। इस घटना के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की गई है।


सांप्रदायिक संवेदनशीलता का मुद्दा

वीडियो में शिक्षक यह कहते हुए सुने जा सकते हैं कि 'आज 6 नवंबर है, और आज से नई कक्षाएं शुरू हुई हैं। बच्चे सुबह की सभा में हैं… जय हिंद, जय भारत।' डोडा जिला, जो चेनाब घाटी का हिस्सा है, सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है, जहाँ लगभग 53% मुस्लिम और 47% हिंदू आबादी निवास करती है। इस घटना ने प्रशासन और समाज में चिंता की लहर पैदा कर दी है।


शिक्षा का उद्देश्य और समाज पर प्रभाव

इस वायरल वीडियो को देखकर कई सवाल उठते हैं। यह दृश्य किसी फिल्म का नहीं, बल्कि एक स्कूल की वास्तविकता है—जहाँ मासूम बच्चों की सुबह प्रार्थना की बजाय युद्ध के गीत से शुरू हो रही है। 'खून से तिलक करो, गोलियों से आरती' कोई देशभक्ति नहीं, बल्कि मानसिक विस्फोट की बीजवपनी है। देशभक्ति का अर्थ रक्तपात नहीं होता। यह मनुष्य को बेहतर नागरिक बनाना सिखाती है, न कि बंदूक की आरती करना। जब शिक्षक, जो बच्चों के मन की पहली पाठशाला होते हैं, हिंसा का भाव गढ़ने लगें तो समाज की दिशा चिंताजनक हो जाती है।


शिक्षा संस्थानों की भूमिका

शिक्षा संस्थान वे स्थान हैं जहाँ संस्कार रचे जाते हैं, न कि जहाँ खून की महिमा गाई जाती है। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा व्यवस्था में वैचारिक अराजकता घुसपैठ कर रही है। सभी को समझना होगा कि संवेदनशील क्षेत्रों में सांप्रदायिक तनाव भड़काने वाले प्रतीकों और गीतों का इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है। राज्य सरकार का त्वरित संज्ञान सराहनीय है, लेकिन यह केवल एक शिक्षक का मामला नहीं है, यह मानसिकता की बीमारी है जो धीरे-धीरे हमारे समाज में घर कर रही है। अगर बच्चों की सुबह खून और गोलियों से शुरू होगी, तो उनका कल शांति और सह-अस्तित्व से कैसे भरेगा? शिक्षा को विचारधारा की युद्धभूमि नहीं, मानवीय मूल्य का मंदिर बनने देना ही आज की सबसे बड़ी देशभक्ति होगी।


सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो