डॉ. मोहन भागवत ने देवभक्ति और देशभक्ति के संबंध पर प्रकाश डाला
डॉ. मोहन भागवत ने नागपुर में आयोजित एक पूजा समारोह में देवभक्ति और देशभक्ति के बीच गहरे संबंधों पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि सच्ची देवभक्ति देशभक्ति से जुड़ी हुई है और यह अनुभव की बात है। कार्यक्रम में श्री श्री रविशंकर जी ने भी भाग लिया और डॉ. भागवत का सम्मान किया। जानें उनके विचार और समाज के प्रति उनकी दृष्टि।
Sep 11, 2025, 13:37 IST
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नागपुर में आयोजित पूजा समारोह में विचार
नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि देवभक्ति और देशभक्ति, भले ही अलग शब्द प्रतीत होते हैं, लेकिन भारत में ये एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। जो सच्चे मन से देवभक्ति करेगा, वह देश की भी भक्ति करेगा। इसी प्रकार, जो व्यक्ति देशभक्ति में प्रामाणिकता दिखाएगा, वह भगवान की भक्ति भी करेगा। यह केवल तर्क नहीं, बल्कि अनुभव की बात है। सरसंघचालक जी ने यह वक्तव्य आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा नागपुर के मानकापुर क्रीड़ा स्टेडियम में आयोजित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग महारुद्र पूजा के अवसर पर दिया। इस कार्यक्रम में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर जी भी उपस्थित थे।
उन्होंने आगे कहा कि भारत का अस्तित्व तब से है जब इतिहास भी जागरूक नहीं था। शिवशंकर जी आदिगुरू हैं और सभी के अंदर एकता का तत्व है, जिसे जानने के लिए 108 रास्ते हैं। सभी को सिखाने वाले शिवजी हैं। मनुष्यों की प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है, इसलिए सभी को एक ही रास्ता पसंद नहीं आता। रुचियों के विविधता के कारण कई रास्ते हैं, लेकिन सभी का लक्ष्य एक ही है। ये विभिन्न मार्ग शिवजी द्वारा प्रदर्शित किए गए हैं।
डॉ. भागवत ने कहा कि तपस्या का सार भारत में ही है। जब तपस्या का वास्तविक अर्थ समझ में आता है, तब यह ज्ञात होता है कि जो हम में है, वही सब में है। हमारा आपसी संबंध एक गहरा रिश्ता है, न कि केवल एक कॉन्ट्रैक्ट। बच्चों को हम इसलिए नहीं पढ़ाते कि वे बड़े होकर हमारी सेवा करें, बल्कि यह हमारा कर्तव्य है। बच्चे जब बड़े होते हैं, तो सोचते हैं कि उन्होंने हमें प्यार से बड़ा किया, इसलिए उनकी सेवा करना उनका कर्तव्य है।
उन्होंने कहा कि जीवन अपनेपन के आधार पर चलता है। आज की दुनिया इस अपनेपन के संबंधों की कमी महसूस कर रही है। पिछले 2000 वर्षों से दुनिया एक अधूरी बात पर आधारित प्रभाव में चल रही है। मनुष्यों का ज्ञान बढ़ा है, लेकिन इसके बावजूद झगड़े जारी हैं। सुख-सुविधाएं बढ़ गई हैं, लेकिन संतोष की कमी बनी हुई है। विकास हो रहा है, लेकिन पर्यावरण की स्थिति खराब हो रही है। इस सबको देखते हुए दुनिया अब लड़खड़ा रही है। सही रास्ता शिवजी के पास है। जब यह रास्ता मिला, तब हमारे पूर्वजों ने सोचा कि यदि सब अपने हैं, तो यह ज्ञान सभी को मिलना चाहिए। इसलिए उन्होंने गांवों, जंगलों और झोपड़ियों में ज्ञान का प्रचार किया।
उन्होंने कहा कि राम मनोहर लोहिया के अनुसार, भगवान राम उत्तर से दक्षिण को जोड़ते हैं, भगवान कृष्ण पूरब से पश्चिम को, लेकिन भगवान शिव भारत के हर कण में विद्यमान हैं। हम सभी शिवजी की पूजा करते हैं, लेकिन पूजा का अर्थ है कि हमें उनकी तरह बनने का प्रयास करना चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में, डॉ. मोहन भागवत का सम्मान किया गया। श्री श्री रविशंकर जी ने कहा कि धर्म की रक्षा भगवान नंदी करते हैं और उन्होंने डॉ. भागवत को पुष्पमाला, शाल और नंदीबैल की प्रतिकृति देकर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि डॉ. भागवत कर्मनिष्ठ और समर्पित हैं, जो लगातार देश और समाज के लिए अपना समय देते हैं। उनके मार्गदर्शन में करोड़ों लोग देशभक्ति और धर्म की स्थापना में लगे हुए हैं। संघ पिछले 100 वर्षों से देश की धरोहर को बचाने का कार्य कर रहा है और यह यशस्वी भी हुआ है। संघ के लाखों लोग समाज के लिए समय दे रहे हैं और संघ का कार्य बढ़ता रहना चाहिए। युवा पीढ़ी को प्रेरित होकर देश और देवभक्ति में संलग्न होना चाहिए।