डॉ. मोहन भागवत का संदेश: संतुलन और धर्म का महत्व

डॉ. मोहन भागवत ने हाल ही में एक व्याख्यान में धर्म और संतुलन के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने समाज में परिवर्तन की आवश्यकता और आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम उठाने की बात की। भागवत ने बताया कि संतुलन ही धर्म है, जो अतिवाद से बचाता है। उन्होंने पंच परिवर्तन के सिद्धांतों के माध्यम से समाज में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया। उनके विचारों में वैश्विक समस्याओं का समाधान और भारत की भूमिका पर भी चर्चा की गई।
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डॉ. मोहन भागवत का संदेश: संतुलन और धर्म का महत्व

धर्म का संतुलन और समाज में परिवर्तन

नई दिल्ली, 27 अगस्त। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि संतुलन ही धर्म है, जो अतिवाद से बचाता है। भारत की परंपरा इसे मध्यम मार्ग के रूप में देखती है, जो आज की दुनिया की सबसे बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि समाज में परिवर्तन की शुरुआत घर से करनी होगी। इसके लिए संघ ने पंच परिवर्तन के सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं - कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्व-बोध (स्वदेशी) और नागरिक कर्तव्यों का पालन। आत्मनिर्भर भारत के लिए स्वदेशी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय व्यापार स्वेच्छा से होना चाहिए, न कि किसी दबाव में।


संघ का कार्य और जीवन के मूल्य

डॉ. भागवत ने संघ के कार्य की व्याख्या करते हुए कहा कि यह शुद्ध प्रेम और समाज के प्रति निष्ठा पर आधारित है। संघ का स्वयंसेवक व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा नहीं करता। यहाँ इंसेंटिव नहीं होते, बल्कि स्वयंसेवक समाज सेवा में आनंद का अनुभव करते हैं। उन्होंने बताया कि जीवन की सार्थकता इसी सेवा में निहित है। सज्जनों से मित्रता करना, दुष्टों की उपेक्षा करना और करुणा का भाव रखना संघ के जीवन मूल्य हैं।


हिन्दुत्व की परिभाषा

हिन्दुत्व की मूल भावना पर उन्होंने कहा कि यह सत्य, प्रेम और अपनापन है। हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें सिखाया है कि जीवन केवल अपने लिए नहीं है। भारत को विश्व में मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए, जिससे विश्व कल्याण का विचार जन्म ले।


दुनिया की दिशा और धर्म का महत्व

डॉ. भागवत ने चिंता व्यक्त की कि दुनिया कट्टरता और अशांति की ओर बढ़ रही है। उन्होंने गांधी जी के सात सामाजिक पापों का उल्लेख करते हुए कहा कि इनसे समाज में असंतुलन बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज दुनिया को धर्म का मार्ग अपनाना होगा, जो संतुलन सिखाता है। धर्म का अर्थ है मर्यादा और संतुलन के साथ जीना, जो विश्व शांति की स्थापना में सहायक होगा।


वैश्विक समस्याएँ और समाधान

वैश्विक संदर्भ में उन्होंने कहा कि शांति, पर्यावरण और आर्थिक असमानता पर चर्चा हो रही है, लेकिन समाधान दूर है। इसके लिए हमें प्रमाणिकता से सोचना होगा और त्याग तथा बलिदान लाना होगा।


भारत का संयम और समाज का उदाहरण

भारत के आचरण की चर्चा करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि हमने हमेशा संयम रखा है और दूसरों की मदद की है। भारतीय समाज को अपने आचरण से दुनिया में एक उदाहरण प्रस्तुत करना होगा।


भविष्य की दिशा और संघ का उद्देश्य

भविष्य की दिशा पर उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य है कि सभी वर्गों और स्तरों पर संघ कार्य पहुँचे। समाज में अच्छे कार्य करने वाली सज्जन शक्ति को आपस में जोड़ना होगा।


आर्थिक प्रगति और पड़ोसी देशों से रिश्ते

आर्थिक दृष्टि पर उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसा विकास मॉडल प्रस्तुत करना होगा, जिसमें आत्मनिर्भरता और पर्यावरण का संतुलन हो। पड़ोसी देशों से रिश्तों पर उन्होंने कहा कि हमें विरासत में मिले मूल्यों से सबकी प्रगति के लिए जोड़ना होगा।


पंच परिवर्तन और समाज परिवर्तन

डॉ. भागवत ने कहा कि समाज परिवर्तन की शुरुआत अपने घर से करनी होगी। इसके लिए संघ ने पंच परिवर्तन बताए हैं, जैसे कुटुंब प्रबोधन और सामाजिक समरसता।


संघ का दृष्टिकोण

अंत में उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य है कि भारत ऐसी छलांग लगाए कि उसका कायापलट हो और विश्व में सुख और शांति कायम हो।