डॉ. मुरली मनोहर जोशी का आर्थिक समानता पर जोर, चुनावी कल्याण की परिभाषा पर सवाल
डॉ. जोशी का बयान
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने हाल ही में कहा कि चुनावों के दौरान धन बांटना असली कल्याण नहीं है। उन्होंने लोकतंत्र को सशक्त बनाने के लिए आर्थिक समानता, समान विकास और राजनीतिक अधिकारों के समुचित उपयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। यह टिप्पणी तब आई है जब बिहार में एनडीए की जीत का मुख्य कारण सरकारी योजना के तहत महिलाओं को 10,000 रुपये की राशि का हस्तांतरण बताया जा रहा है।
आर्थिक असमानता का मुद्दा
दिल्ली में जीवीजी कृष्णमूर्ति की जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में, डॉ. जोशी ने देश के विभिन्न हिस्सों जैसे कर्नाटक, बिहार, महाराष्ट्र, पूर्वोत्तर, रेगिस्तान और पहाड़ी क्षेत्रों में आर्थिक असमानता की बात की। उन्होंने कहा कि इस असमानता के कारण वोट की वास्तविक 'वैल्यू' भी प्रभावित होती है। संविधान राजनीतिक अधिकार प्रदान करता है, लेकिन इनका अर्थपूर्ण उपयोग आर्थिक न्याय के बिना संभव नहीं है। उन्होंने इस असमानता को 'भेदभाव' करार दिया और कहा कि 'कल्याण केवल चुनावों में पैसे बांटने से नहीं होता।'
बिहार चुनावों पर टिप्पणी
डॉ. जोशी ने बिहार चुनावों का अप्रत्यक्ष रूप से उल्लेख करते हुए कहा कि यह सवाल उठ रहा है कि क्या पैसा कल्याण के लिए दिया गया था या वोट खरीदने के लिए। उन्होंने भारत को छोटे-छोटे राज्यों में पुनर्गठित करने का सुझाव दिया, जिसमें लगभग 70 राज्य हों, ताकि जनसंख्या और विधानसभा सीटें लगभग समान हों। इससे विकास और संसाधनों का समान वितरण संभव होगा।
राजनीतिक वर्ग के लिए आईना
डॉ. जोशी की बातें उस राजनीतिक वर्ग के लिए एक आईना हैं, जो कल्याण को चुनावी अवसरवाद के रूप में देखता है। सत्ता में बैठे लोग जब चुनावों से पहले बड़ी मात्रा में धन बांटते हैं, तो इसे कल्याण कहना जनता का अपमान है। यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था का एक विकृत मॉडल है, जिसमें गरीबी एक वोट-बैंक बन गई है। जोशी ने सीधा सवाल उठाया कि वोट तो सभी का बराबर है, लेकिन वोटर की आर्थिक ताकत समान क्यों नहीं है?
छोटे राज्यों का प्रस्ताव
राज्यों को छोटे करने का जो प्रस्ताव डॉ. जोशी ने रखा है, वह राजनीतिक रूप से संवेदनशील है लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से उचित है। भारत में यह चर्चा अक्सर सत्ता के समीकरणों को बिगाड़ने के डर से दबा दी जाती है। जोशी की टिप्पणियाँ सत्ता के गलियारों में हलचल पैदा कर सकती हैं, क्योंकि यह उस मूलभूत सच्चाई को उजागर करती हैं जिसे सरकारें छिपाना चाहती हैं। लोकतंत्र को केवल वोट से नहीं, बल्कि समानता से चलाया जाना चाहिए। अब यह देखना है कि क्या राजनीतिक पार्टियाँ इस चुनौती को स्वीकार करेंगी या फिर चुनावी घोषणाओं और नकद हस्तांतरण की प्रतिस्पर्धा में जनता को हमेशा 'सस्ता सौदा' समझती रहेंगी।
