ट्रेन यात्रा में सुरेखा का सामना: एक असामान्य अनुभव

सुरेखा की ट्रेन यात्रा

आज की ट्रेन यात्रा में अपेक्षा से कम भीड़ थी। सुरेखा ने एक खाली सीट पर अपना ऑफिस बैग रखा और खुद बगल में बैठ गई।
डिब्बे में कुछ पुरुषों के अलावा केवल सुरेखा ही थी। रात का समय था, और सभी लोग थके हुए नजर आ रहे थे, कुछ बातें कर रहे थे जबकि अन्य ऊँघ रहे थे।
तभी, डिब्बे में 3-4 तृतीय पंथी लोग तालियां बजाते हुए आए और पुरुषों से 5-10 रुपये मांगने लगे।
कुछ ने चुपचाप पैसे दे दिए, जबकि कुछ ने बड़बड़ाते हुए विरोध किया।
‘क्या मौसी, रात में तो छोड़ दो हफ्ता वसूली…’
वे सुरेखा की ओर देखे बिना आगे बढ़ गए।
कुछ समय बाद, ट्रेन रुकी और कुछ लड़के चढ़े, फिर आगे बढ़ गए। सुरेखा की मंजिल अभी एक घंटे दूर थी।
चार-पांच लड़के सुरेखा के पास खड़े हो गए। उनमें से एक ने उसे ललचाई नजरों से देखा और कहा, ‘मैडम, अपना बैग उठाइए, सीट बैठने के लिए है, सामान रखने के लिए नहीं।’
अन्य लड़कों ने उसकी बात पर हंसते हुए समर्थन किया।
सुरेखा ने अपना बैग उठाकर सीट पर सिमटकर बैठ गई।
सभी लड़के उसके बगल में बैठ गए।
सुरेखा ने सामने बैठे कुछ पुरुषों की ओर देखा, लेकिन वे उसकी उपेक्षा करते हुए अपने में ही खोए रहे।
पास बैठे लड़के ने उसकी बांह पर अपनी उंगली फेरी, और बाकी लड़कों ने फिर से हंसते हुए उसका मजाक उड़ाया।
‘ओ... मिस्टर, थोड़ा तमीज में रहिए,’ सुरेखा ने ऊँची आवाज में कहा।
डिब्बे के पुरुष अब भी अपनी दुनिया में खोए हुए थे।
‘अरे, मैडम तो गुस्सा हो गईं, बैठ जाइए, आपकी और हमारी मंजिल अभी दूर है, तब तक हम आपका मनोरंजन करेंगे,’ एक लड़का सुरेखा का हाथ पकड़कर बोला।
डिब्बे की सभी सीटों पर लोग जैसे पत्थर की मूर्तियों की तरह बैठे थे।
तभी उन तृतीय पंथी लोगों ने सुरेखा की आवाज सुनी और आगे आए।
‘अरे, तू क्या मनोरंजन करेगा, हम तेरा मनोरंजन करेंगे,’ उन्होंने कहा।
‘शबाना, उठाओ लहंगा, इस चिकने को लहंगे में बड़ी जवानी चढ़ी है,’ एक ने कहा।
‘आय, मुंह तो देखो, सुअरों का, कुतिया भी ना चाटे,’ दूसरे ने कहा।
‘इनमें बड़ी मस्ती चढ़ी है, जूली, उतारो इनके कपड़े, पूरी मस्ती निकालते हैं इनकी,’ एक और ने कहा।
जब जूली नाम का तृतीय पंथी उन लड़कों की ओर बढ़ा, तो लड़के डिब्बे के दरवाजे की ओर भाग निकले और धीमी चलती ट्रेन से कूद पड़े।
सुरेखा की आंखों में आंसू थे, उसने डिब्बे में बैठे पुरुषों की ओर देखा, जो अपने मोबाइल में व्यस्त थे।
और असली मर्द तालियां बजाते हुए किसी और डिब्बे की ओर बढ़ चुके थे।