झारखंड में हूल दिवस पर आदिवासी योद्धाओं को श्रद्धांजलि

झारखंड में हूल दिवस पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने आदिवासी योद्धाओं के बलिदान को याद किया। यह दिन 1855-56 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ हुए संथाल विद्रोह की स्मृति में मनाया जाता है। सोरेन ने वीर शहीदों के संघर्ष को नमन करते हुए कहा कि उनके बलिदान से आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिलेगी। जानें इस दिन का महत्व और आदिवासी संस्कृति की रक्षा के लिए किए गए संघर्ष के बारे में।
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झारखंड में हूल दिवस पर आदिवासी योद्धाओं को श्रद्धांजलि

हूल दिवस का महत्व

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने सोमवार को हूल दिवस के अवसर पर संथाल विद्रोह में आदिवासी योद्धाओं के बलिदान को याद किया और लोगों को शुभकामनाएं दीं।


हूल दिवस 1855-56 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ हुए संथाल विद्रोह की स्मृति में मनाया जाता है। इस विद्रोह का नेतृत्व आदिवासी भाई सिदो और कान्हू मुर्मू ने किया था, जो झारखंड क्षेत्र में हुआ।


मुख्यमंत्री का संदेश

सोरेन ने सोशल मीडिया पर एक संदेश में कहा, 'हूल विद्रोह के महान नायकों, अमर शहीद सिदो और कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो और अन्य वीर शहीदों के संघर्ष और बलिदान को नमन करता हूं।'


उन्होंने आगे कहा कि स्वतंत्रता संग्राम से पहले हूल विद्रोह के नायकों ने अंग्रेजी हुकूमत और महाजनों के अत्याचारों के खिलाफ तथा जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए आदिवासी अस्मिता की मशाल जलाई थी।


राज्यपाल का संदेश

सोरेन ने कहा, 'अमर वीर शहीद सिदो और कान्हू अमर रहें! झारखंड के वीर शहीद अमर रहें! जय झारखंड!' राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने भी हूल दिवस पर आदिवासियों को बधाई दी और संथाल विद्रोह के सेनानियों को सलाम किया।


गंगवार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, 'ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनका संघर्ष आने वाली पीढ़ियों को अन्याय के खिलाफ लड़ने और मातृभूमि की सेवा करने के लिए प्रेरित करेगा।' यह विद्रोह भोगनाडीह गांव से शुरू हुआ था, जिसका उद्देश्य संथाल लोगों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाना था।