जीतन राम मांझी ने राज्यसभा सीट की मांग की, कहा- हक न मिला तो खुद बनाएंगे रास्ता

केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने आगामी राज्यसभा चुनावों में अपनी पार्टी के लिए एक सीट की मांग की है। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें उनका हक नहीं मिला, तो उन्हें अपने राजनीतिक विकल्पों पर विचार करना पड़ सकता है। मांझी ने 2024 के चुनावों में दो लोकसभा सीटों और एक राज्यसभा सीट का वादा किया गया था, लेकिन अभी तक राज्यसभा सीट लंबित है। जानें उनके विचार और पार्टी की स्थिति के बारे में।
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जीतन राम मांझी ने राज्यसभा सीट की मांग की, कहा- हक न मिला तो खुद बनाएंगे रास्ता

राज्यसभा चुनावों के लिए सीट की मांग

जीतन राम मांझी ने राज्यसभा सीट की मांग की, कहा- हक न मिला तो खुद बनाएंगे रास्ता

केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी

केंद्रीय मंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी ने आगामी राज्यसभा चुनावों में अपनी पार्टी के लिए एक सीट की मांग की है। गया में मीडिया से बातचीत करते हुए मांझी ने कहा कि हाल ही में खबरें आई थीं कि JDU को दो, बीजेपी को दो और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) को एक सीट दी जा रही है। ऐसे में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) का क्या होगा?

उन्होंने आगे कहा कि 2024 के चुनावों में हमें दो लोकसभा सीटों और एक राज्यसभा सीट का आश्वासन दिया गया था। उस समय हमें एक लोकसभा सीट मिली, जिसे हमने जीता और इसके लिए हम प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त करते हैं, लेकिन राज्यसभा सीट अभी भी लंबित है। अप्रैल में होने वाले राज्यसभा चुनावों में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) को एक सीट मिलनी चाहिए। यह हमारी मांग है और हम इसे पार्टी के अधिकारियों के सामने रख रहे हैं।

मंत्री पद की अहमियत पर जीतन राम मांझी का बयान

मांझी ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर हमें हमारा हक नहीं मिला, तो हमें अपने रास्ते खुद बनाने होंगे। उनके लिए मंत्री पद कोई बड़ी बात नहीं है। यदि वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में नहीं भी रहेंगे, तो भी उनका राजनीतिक अस्तित्व बना रहेगा।

उन्होंने कहा कि वह केवल पार्टी के संरक्षक हैं और अंतिम निर्णय पार्टी के पदाधिकारियों द्वारा लिया जाएगा, लेकिन उन्होंने अपनी बात कार्यकर्ताओं के सामने मजबूती से रखी है। मांझी के साथ उनके बेटे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष कुमार सुमन भी मौजूद थे।

उन्होंने मीडिया से कहा कि उनकी बातों को संदर्भ से बाहर न निकाला जाए। वह अपनी पार्टी का कोई निर्णय नहीं ले सकते, क्योंकि वह केवल संरक्षक हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि यदि उनकी मांग पूरी नहीं हुई, तो उन्हें अपने राजनीतिक विकल्पों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।