जीजा से मिले महंगे गिफ्ट पर टैक्स विवाद: ITAT ने दी राहत
इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल का महत्वपूर्ण फैसला
इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल
रिश्तों में उपहारों का आदान-प्रदान सामान्य है, लेकिन जब एक महंगा उपहार आपको आयकर के जाल में फंसा दे, तो स्थिति जटिल हो जाती है। एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसमें एक व्यक्ति को अपने जीजा से 80 लाख रुपये का उपहार मिला, जिसके बाद आयकर विभाग ने इसे 'आय' मानते हुए 69 लाख रुपये का भारी टैक्स नोटिस जारी किया। यह मामला यूएई में रहने वाले डॉ. चौधरी का है, जिन्होंने इस मुद्दे को लेकर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और अंततः इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (ITAT) तक पहुंचे। 4 नवंबर 2025 को ITAT कोलकाता द्वारा दिए गए फैसले ने 'रिश्तेदार' की परिभाषा और उपहार पर टैक्स के नियमों को स्पष्ट किया है।
ITR से शुरू हुआ विवाद
यह मामला तब शुरू हुआ जब डॉ. चौधरी ने अपना इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) दाखिल किया, जिसमें उन्होंने अपनी कुल आय लगभग 20 लाख रुपये बताई और उस पर 5.5 लाख रुपये का टैक्स भी भरा। लेकिन उनके बैंक खाते में हुए कुछ बड़े लेन-देन ने आयकर विभाग का ध्यान खींचा। विभाग को इन लेन-देन पर संदेह हुआ।
इसके बाद डॉ. चौधरी को स्पष्टीकरण के लिए पहले सेक्शन 131 के तहत समन भेजा गया। इसके तुरंत बाद सेक्शन 133(6) के तहत एक और नोटिस प्राप्त हुआ। डॉ. चौधरी ने इन लेन-देन से संबंधित सभी आवश्यक दस्तावेज और सबूत विभाग को प्रस्तुत किए, जिसमें बताया गया कि यह 80 लाख रुपये का उपहार उन्हें उनके जीजा से मिला है।
फिर भी, टैक्स अधिकारी उनके उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए। उनके मामले को री-असेसमेंट के लिए चुना गया (सेक्शन 148) और उन्हें दोबारा ITR दाखिल करने के लिए कहा गया। इसके बाद उन्हें सेक्शन 142(1) का नोटिस भी मिला, जिसका उन्होंने उत्तर दिया। लेकिन टैक्स अधिकारी ने इन दलीलों को नाकाफी मानते हुए डॉ. चौधरी की कुल आय 1.5 करोड़ रुपये निर्धारित कर दी और उन पर 69 लाख रुपये की टैक्स डिमांड निकाल दी।
गिफ्ट डीड पर विवाद
इस भारी टैक्स डिमांड से परेशान होकर डॉ. चौधरी ने पहले CIT(A) [कमिश्नर (अपील्स)] के पास अपील की। CIT(A) ने मामले की जांच की और डॉ. चौधरी को आंशिक राहत दी, लेकिन 80 लाख में से 55 लाख रुपये के गिफ्ट से संबंधित मुद्दे को खारिज कर दिया।
विभाग की आपत्ति मुख्य रूप से इस बात पर थी कि यह गिफ्ट डीड अमेरिका में बनी थी और यह लेन-देन के 9 साल बाद तैयार की गई थी, जिसमें गिफ्ट पाने वाले (डॉ. चौधरी) के हस्ताक्षर भी नहीं थे। विभाग ने इस डीड की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया और जीजा के फंड के स्रोत पर भी संदेह जताया।
ITAT का निर्णय
आखिरकार, यह मामला ITAT कोलकाता बेंच में पहुंचा, जहां 4 नवंबर 2025 को डॉ. चौधरी को पूरी तरह से जीत मिली। ट्रिब्यूनल ने आयकर अधिनियम के नियमों को स्पष्ट किया और टैक्स विभाग की दलीलों को खारिज कर दिया।
ITAT ने स्पष्ट किया कि आयकर अधिनियम के सेक्शन 56(2)(vii) के तहत 'रिश्तेदार' की परिभाषा में जीजा भी शामिल हैं। कानून के अनुसार, रिश्तेदारों से मिले किसी भी उपहार को आपकी कुल आय में नहीं जोड़ा जा सकता और यह पूरी तरह से टैक्स-फ्री होता है।
ट्रिब्यूनल ने गिफ्ट डीड को लेकर विभाग की आपत्तियों को भी खारिज कर दिया। ITAT ने कहा कि सेक्शन 56 के तहत छूट पाने के लिए किसी औपचारिक गिफ्ट डीड की कानूनी आवश्यकता नहीं है, खासकर जब गिफ्ट की राशि वैध बैंकिंग चैनल के माध्यम से आई हो।
सबसे महत्वपूर्ण बात, ITAT ने फंड के स्रोत पर कहा कि लेन-देन की वास्तविकता, डोनर की पहचान और रकम का NRE अकाउंट के जरिए आना, ये सब साबित हो चुका है। यदि विभाग को डोनर के 55 लाख रुपये के स्रोत पर कोई संदेह था, तो इसकी जांच जीजा के हाथों में होनी चाहिए थी, न कि गिफ्ट पाने वाले डॉ. चौधरी के हाथों में।
चूंकि यह लेन-देन बैंकिंग चैनल से हुआ था और यह साबित हो गया था कि गिफ्ट एक 'रिश्तेदार' से मिला है, इसलिए ITAT ने 80 लाख रुपये की इस राशि को आय मानने के निर्णय को रद्द कर दिया और डॉ. चौधरी के पक्ष में फैसला सुनाया।
