जितिया महापर्व: माताओं का त्यौहार और पारिवारिक कल्याण की प्रार्थना

जितिया महापर्व का महत्व
जितिया महापर्व मिथिलांचल का एक महत्वपूर्ण और पवित्र त्यौहार है, जो पुत्र की लंबी उम्र और परिवार की सुरक्षा के लिए मनाया जाता है। इस त्यौहार की कठिनाई प्रसिद्ध है, जिसमें व्रति महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं। इस वर्ष, जितिया महापर्व 13 सितंबर से शुरू होकर 15 सितंबर की सुबह पारणा के साथ समाप्त होगा।

डॉ. कुणाल कुमार झा, अध्यक्ष, स्नातकोत्तर ज्योतिष विभाग, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, बताते हैं कि जितिया व्रत (महालक्ष्मी व्रत) मिथिलांचल में विशेष महत्व रखता है। यह त्यौहार बच्चों की भलाई और प्रगति के लिए किया जाता है, जिसमें महिलाएं विशेष पूजा करती हैं।
त्यौहार के दिन
13 सितंबर: एकभुक्त का दिन
एकभुक्त: इस दिन व्रति महिलाएं मारुआ रोटी और मछली खाती हैं। यह उपवास के पहले दिन की विशेष रस्म है।
उठगान: रात में उठगान होता है, जो मिथिलांचल में दही-चुर्मा के साथ किया जाता है। यह परंपरा त्यौहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
14 सितंबर: निर्जला व्रत
निर्जला व्रत: इस दिन महिलाएं पूर्ण उपवास रखती हैं, जिसमें दिन-रात पानी का सेवन नहीं किया जाता। यह उपवास अत्यंत कठिन माना जाता है। व्रति महिलाएं बिना पानी के पूरी तरह उपवास करती हैं।
15 सितंबर: पारणा
पारणा का समय: 15 सितंबर को सुबह 6:36 बजे के बाद व्रति महिलाएं पारणा करेंगी। यह कठिन उपवास पारणा के साथ समाप्त होता है, जो पुत्र की लंबी उम्र और परिवार की खुशी और समृद्धि के लिए किया जाता है।
जितिया महापर्व की सांस्कृतिक महत्ता
जितिया महापर्व मिथिलांचल में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक अवसर है। महिलाएं इसे भक्ति के साथ मनाती हैं, परिवार की खुशी और समृद्धि की कामना करती हैं। यह मिथिला की समृद्ध परंपराओं का हिस्सा है।
विशेष सुझाव- उपवास रखने वाली महिलाओं को पारंपरिक नियमों का पालन करना चाहिए। विशेष रूप से निर्जला व्रत के दौरान स्वास्थ्य का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। डॉ. कुणाल कुमार झा का कहना है कि पूजा और व्रत को विधिपूर्वक करने से शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।
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