जलनेति: आयुर्वेदिक चिकित्सा का एक अनमोल उपाय

जलनेति एक प्राचीन आयुर्वेदिक क्रिया है, जो नाक के माध्यम से पानी का अभ्यास करने पर आधारित है। यह साइनसाइटिस, अस्थमा, और अन्य सांस संबंधी समस्याओं में राहत प्रदान करती है। इसके नियमित अभ्यास से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि यह मानसिक विकास में भी सहायक है। जानें जलनेति के लाभ और इसे कैसे सही तरीके से किया जाए।
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जलनेति: आयुर्वेदिक चिकित्सा का एक अनमोल उपाय

जलनेति की महत्ता

नई दिल्ली: आयुर्वेद में अनेक बीमारियों के उपचार के लिए विभिन्न विधियों का उल्लेख किया गया है। इनमें से एक महत्वपूर्ण क्रिया है जलनेति, जो नाक के माध्यम से पानी का अभ्यास करने पर आधारित है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इसे नियमित रूप से किया जाए, तो यह कई स्वास्थ्य समस्याओं से राहत दिला सकता है।


साइनस और सांस संबंधी समस्याओं में लाभ

जलनेति का अभ्यास साइनसाइटिस जैसी समस्याओं में राहत प्रदान करता है। साइनस में सूजन के कारण नाक के खाली स्थान में दबाव बनता है, जिसे जलनेति से कम किया जा सकता है। इसके अलावा, यह अस्थमा, निमोनिया और ब्रोंकाइटिस जैसी सांस संबंधी समस्याओं में भी सहायक है।


शरीर से विषाक्त पदार्थों का निष्कासन

जलनेति के माध्यम से नाक के रास्ते शरीर में प्रवेश करने वाले बैक्टीरिया और अन्य विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जा सकता है। यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक को भी साफ करता है और नाक में संक्रमण को रोकने में मदद करता है।


रूमेटाइड आर्थराइटिस में सुधार

2011 में एक अध्ययन में पाया गया कि यदि योग के कुछ आसनों के साथ जलनेति का अभ्यास किया जाए, तो यह रूमेटाइड आर्थराइटिस के लक्षणों में सुधार कर सकता है। यह सुबह के समय जोड़ों में जकड़न, सूजन और दर्द को कम करने में मदद करता है।


बच्चों के लिए फायदेमंद

यदि बच्चों को नियमित रूप से जलनेति का अभ्यास कराया जाए, तो यह उनके मानसिक विकास में सहायक हो सकता है। यह तनाव को कम करने में भी प्रभावी है और याददाश्त तथा ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को बढ़ाता है।


दृष्टि में सुधार

जो लोग मायोपिया से ग्रस्त हैं, उनके लिए जलनेति एक प्रभावी उपाय हो सकता है। नियमित अभ्यास से आंखों की रोशनी में सुधार होता है और टियर ग्लैंड को आराम मिलता है।


जलनेति का अभ्यास

जलनेति के लिए विशेष बर्तन का उपयोग किया जाता है, जिससे नाक के एक हिस्से में पानी डालकर दूसरे हिस्से से बाहर निकाला जाता है। यह प्रक्रिया दोनों नासिका छिद्रों पर की जाती है। हालांकि, इसे नियमित रूप से कई महीनों तक करना आवश्यक है ताकि इसके लाभ स्पष्ट रूप से देखे जा सकें।