जयपुर में सड़क हादसे ने भारी वाहन लाइसेंस की प्रक्रिया पर उठाए सवाल
जयपुर के हरमाड़ा में सड़क दुर्घटना
जयपुर के हरमाड़ा क्षेत्र में हाल ही में हुए एक सड़क हादसे ने चालकों के लाइसेंस की योग्यता को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। भारी वाहनों जैसे बस, ट्रक, और डम्पर चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस की आवश्यकता होती है। हालांकि, राजस्थान में किसी भी आरटीओ या डीटीओ कार्यालय में भारी वाहनों के लिए ड्राइविंग ट्रायल की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
भारी वाहन के लाइसेंस के लिए आवेदक को हल्के मोटर यान का लाइसेंस एक वर्ष पुराना होना आवश्यक है। इसके अलावा, लर्निंग लाइसेंस प्राप्त करने के बाद, आवेदक को मोटर ड्राइविंग स्कूल से एक महीने का प्रशिक्षण प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत करना होता है। लेकिन ये सभी प्रक्रियाएं केवल कागजी औपचारिकता बनकर रह गई हैं।
भारी वाहन लाइसेंस में खामियां
– मोटर ड्राइविंग स्कूलों से प्राप्त एक महीने का प्रमाण पत्र केवल कागजी खानापूर्ति है।
– ये प्रमाण पत्र अक्सर पैसे देकर आसानी से मिल जाते हैं।
– राजस्थान में RTO-DTO कार्यालयों में ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रायल ट्रैक हैं, लेकिन ये केवल हल्के मोटर वाहनों के लिए हैं।
– भारी वाहनों के लिए ट्रायल ट्रैक किसी भी RTO-DTO में उपलब्ध नहीं है।
– इस कारण, परिवहन निरीक्षक मैन्युअल ट्रायल लेकर लाइसेंस जारी करते हैं।
उड़ीसा मॉडल का अनुपालन
– परिवहन विभाग को भारी वाहन लाइसेंस के लिए उड़ीसा मॉडल लागू करना चाहिए।
– उड़ीसा में आवेदकों को भारी वाहन चलाने के लिए एक महीने की ट्रेनिंग लेनी होती है।
– इस ट्रेनिंग पर राज्य सरकार प्रति आवेदक 26 हजार रुपए खर्च करती है।
– आवासीय ट्रेनिंग और ट्रायल के बाद ही लाइसेंस जारी किया जाता है।
– लाइसेंस रिन्यू करते समय तीन दिन की रिफ्रेशर ट्रेनिंग का प्रावधान है।
जागरूकता की कमी
परिवहन विभाग का एक महत्वपूर्ण कार्य सड़क दुर्घटनाओं के प्रति जागरूकता फैलाना भी है। लेकिन इस दिशा में गतिविधियां बहुत कम होती हैं। साल में केवल एक बार सड़क सुरक्षा सप्ताह के दौरान जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
सड़क सुरक्षा कोष में जो फंड मिलता है, वह खर्च नहीं किया जाता। विभाग के पास इस कोष में लगभग 500 करोड़ रुपए जमा हैं।
सड़क सुरक्षा कोष का सदुपयोग
– परिवहन विभाग सड़क सुरक्षा कोष का सही उपयोग नहीं कर रहा है।
– 2016 में स्थापित होने के बाद से कोष में 793 करोड़ रुपए जमा हुए हैं, जिनमें से केवल 293 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।
– विभाग के पास अभी भी 500 करोड़ रुपए का फंड उपलब्ध है।
– प्रति RTO कार्यालय को केवल 5 लाख और प्रति DTO कार्यालय को 2 लाख रुपए दिए जाते हैं, जिससे सड़क सुरक्षा गतिविधियों का आयोजन संभव नहीं हो पाता।
