जयपुर के सरकारी अस्पतालों में अधीक्षकों का सामूहिक इस्तीफा, निजी प्रैक्टिस पर रोक के खिलाफ विरोध
प्रिंसिपल और अधीक्षकों का विरोध
जयपुर में सरकारी मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपल और अस्पताल अधीक्षकों ने निजी प्रैक्टिस पर रोक के आदेशों के खिलाफ खुलकर विरोध किया है। सोमवार को सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज (SMS) से जुड़े विभिन्न अस्पतालों के अधीक्षकों ने प्रिंसिपल डॉ. दीपक माहेश्वरी को सामूहिक इस्तीफे की पेशकश की, आरोप लगाते हुए कि प्रशासन ने 'एकतरफा निर्णय' लिया है।
अधीक्षकों का सामूहिक इस्तीफा
जे.के. लोन हॉस्पिटल के आर.एम. सेहरा, सांगानेरी गेट महिला चिकित्सालय की अधीक्षक आशा वर्मा, सैटेलाइट हॉस्पिटल के गोर्वधन मीणा, और गणगौरी हॉस्पिटल के डॉ. लिनेश्वर हर्षवर्धन सहित अन्य अधीक्षकों ने SMS हॉस्पिटल पहुंचकर अपने इस्तीफे का विरोध किया। सभी अधीक्षक प्रिंसिपल के चैंबर में एकत्र हुए और लगभग एक घंटे तक प्रैक्टिस पर रोक और कार्य नियमों पर चर्चा की।
स्वास्थ्य मंत्री से मुलाकात
इस्तीफे सौंपने के बाद, सभी अधीक्षक स्वास्थ्य मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर से मिलने गए। मंत्री निवास पर हुई बैठक में डॉक्टरों ने कहा कि निजी प्रैक्टिस पर रोक और प्रशासनिक पदों पर कार्य सीमा को 25% तक सीमित करना 'न्यायोचित नहीं' है।
अधिकतम आयु सीमा पर आपत्ति
डॉक्टरों ने यह भी बताया कि अधीक्षक और प्रिंसिपल पद के लिए आवेदन की अधिकतम आयु 57 वर्ष निर्धारित की गई है, जबकि सरकार ने इन पदों पर सेवा की अधिकतम आयु 62 वर्ष रखी है। इससे 58 या 59 वर्ष के अनुभवी चिकित्सक आवेदन से बाहर हो जाएंगे।
प्रशासन के आदेशों पर विवाद
अधीक्षकों का कहना है कि प्रशासन ने बिना किसी व्यापक विचार-विमर्श के यह आदेश जारी किया है, जो विवादास्पद और अव्यवहारिक है। स्वास्थ्य मंत्री खींवसर ने आश्वासन दिया कि मामले का समाधान जल्द निकाला जाएगा और उन्होंने 18 नवंबर को मेडिकल एजुकेशन सचिव के साथ विशेष बैठक बुलाने के निर्देश दिए हैं।
राजस्थान मेडिकल कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन का विरोध
इससे पहले, 11 नवंबर को जारी आदेशों का राजस्थान मेडिकल कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन (RMCTA) ने भी विरोध किया था। एसोसिएशन ने कहा कि निजी प्रैक्टिस पर रोक का निर्णय क्लिनिकल डॉक्टरों को 'हाशिए पर धकेलने' जैसा है।
सरकार पर बढ़ा दबाव
वर्तमान घटनाक्रम और सामूहिक इस्तीफों ने सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है। मेडिकल कॉलेजों और बड़े अस्पतालों की प्रशासनिक व्यवस्था अधीक्षकों पर निर्भर करती है, जिससे उनके इस्तीफे लंबी खींचतान का कारण बन सकते हैं। 18 नवंबर की बैठक को इस विवाद के समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
