जम्मू-कश्मीर विधानसभा सत्र: विपक्ष ने उठाए जनहित के मुद्दे
जम्मू-कश्मीर विधानसभा का शरदकालीन सत्र आज अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। अंतिम दिन विपक्ष ने उमर अब्दुल्ला सरकार पर तीखी आलोचना की, आरोप लगाते हुए कि सरकार जनहित के मुद्दों को नजरअंदाज कर रही है। भाजपा विधायक पवन गुप्ता का स्थगन प्रस्ताव बाढ़ पीड़ितों की समस्याओं पर चर्चा के लिए अस्वीकार कर दिया गया, जिसके विरोध में भाजपा विधायकों ने सदन से वॉकआउट किया। इस सत्र में पांच सरकारी विधेयक पारित हुए, लेकिन विपक्ष ने कहा कि इनमें आम नागरिक की समस्याओं का समाधान नहीं है। इस सत्र ने यह स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति में जनहित के प्रश्न फिर से महत्वपूर्ण हो रहे हैं।
| Oct 31, 2025, 17:45 IST
जम्मू-कश्मीर विधानसभा का शरदकालीन सत्र स्थगित
आज जम्मू-कश्मीर विधानसभा का शरदकालीन सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। इस सत्र के अंतिम दिन, विपक्ष ने उमर अब्दुल्ला की सरकार को कठोर आलोचना का सामना करना पड़ा। नौ दिनों तक चले इस सत्र में अपेक्षाकृत शांति बनी रही, लेकिन अंतिम दिन विपक्षी दलों ने सरकार पर जनहित से जुड़े मुद्दों की अनदेखी करने का आरोप लगाया। भाजपा विधायक पवन गुप्ता ने बाढ़ पीड़ितों की समस्याओं पर चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव पेश किया, जिसे विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर ने अस्वीकार कर दिया। इसके विरोध में भाजपा विधायकों ने सदन से वॉकआउट किया। विपक्ष ने कहा कि सरकार जन-समस्याओं को नजरअंदाज कर केवल “औपचारिक विधायी कार्यवाही” में उलझी रही।
विधेयकों की पारितगी और विवाद
इस विधानसभा सत्र में पांच सरकारी विधेयक पारित हुए और दो गैर-सरकारी प्रस्तावों पर चर्चा की गई। हालांकि, 41 गैर-सरकारी विधेयक सूचीबद्ध थे, लेकिन केवल आठ पर ही चर्चा हो पाई। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने गैर-सरकारी प्रस्तावों को केवल औपचारिकता में बदल दिया है और जनहित के मुद्दों से दूरी बना ली है। एक अन्य विवाद ने भी सत्र के दौरान गर्म माहौल पैदा किया, जब नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) विधायक जावेद मिर्चल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें वह विधानसभा कार्यवाही के दौरान मोबाइल पर “रील देखते” नजर आए। इस पर सदन में हंगामा मच गया। मिर्चल ने कहा कि एक पत्रकार ने “अनुचित ढंग से” उनका वीडियो बनाया और उनके चरित्र पर सवाल उठाए।
विपक्ष की प्रतिक्रिया और विधानसभा की गरिमा
गुरेज से नेकां विधायक नजीर अहमद खान ने पत्रकार के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की घोषणा की। विधानसभा अध्यक्ष राथर ने कहा कि “इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।” सत्र के अंत में अध्यक्ष ने सभी सदस्यों को सहयोग के लिए धन्यवाद दिया, लेकिन विपक्ष ने स्पष्ट किया कि “जनता के मुद्दों को दबाया नहीं जा सकता।”
राजनीतिक परिदृश्य और जनहित के मुद्दे
जम्मू-कश्मीर विधानसभा का यह शरदकालीन सत्र ऐसे समय में संपन्न हुआ है जब राज्य की राजनीति “जनहित बनाम सत्ता हित” के द्वंद्व में फंसी हुई है। उमर अब्दुल्ला सरकार ने विधायी कार्यों को प्राथमिकता दी, लेकिन विपक्ष ने सवाल उठाया कि इन विधेयकों में आम नागरिक की समस्याओं का समाधान नहीं है। बाढ़ पीड़ितों की समस्याएं, सीमांत क्षेत्रों में रोजगार संकट, और बिजली एवं जल आपूर्ति की दिक्कतें, ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर विपक्ष ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया। पवन गुप्ता का स्थगन प्रस्ताव खारिज होना इस असंतोष का प्रतीक बन गया।
संसदीय गरिमा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
एक विधायक के मोबाइल पर रील देखने और पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई की मांग ने संसदीय गरिमा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को विवाद का केंद्र बना दिया। यदि विधायक वाकई कार्यवाही के दौरान लापरवाह थे, तो यह लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन है; लेकिन यदि पत्रकार की रिपोर्टिंग पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी, तो यह लोकतंत्र के “स्वतंत्र चौथे स्तंभ” पर चोट होगी। यह सत्र यह भी याद दिलाता है कि विधानसभा केवल विधेयक पारित करने का स्थान नहीं, बल्कि जनता की आवाज़ सुनने का मंच है। विपक्ष का यह प्रयास—चाहे वॉकआउट हो या बहस में तीखापन, यह संदेश देता है कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति में जनहित के प्रश्न फिर से केंद्र में लौट रहे हैं। सवाल यह है कि क्या उमर सरकार इस शोर के बीच जनता की वास्तविक पुकार को सुन पाएगी, या यह सत्र भी विधायी औपचारिकताओं की सूची में एक और संख्या बनकर रह जाएगा?
