जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक तनाव: मेहराज मलिक की गिरफ्तारी और उसके प्रभाव

डोडा में तनाव का माहौल
जम्मू-कश्मीर का डोडा जिला हाल के दिनों में तनाव और अशांति का केंद्र बन गया है। आम आदमी पार्टी के विधायक मेहराज मलिक को जन सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लेने के बाद, क्षेत्र में हुई हिंसक झड़पों ने कश्मीर की नाजुक स्थिति को और जटिल बना दिया है। उनकी गिरफ्तारी के बाद डोडा और आस-पास के इलाकों में बिगड़ते हालात यह दर्शाते हैं कि कुछ स्थानीय नेता राजनीतिक लाभ के लिए संवेदनशील मुद्दों को भड़काने से नहीं चूकते।
गिरफ्तारी के कारण और प्रभाव
डोडा सीट से 2024 में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे मेहराज मलिक पर 'सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने' और भीड़ को उकसाने के गंभीर आरोप हैं। प्रशासन ऐसे कठोर कानून का उपयोग तब करता है जब किसी व्यक्ति से शांति और सुरक्षा को ठोस खतरा हो। उनकी गिरफ्तारी के बाद हुई हिंसक घटनाएँ इस बात का प्रमाण हैं कि उनकी मौजूदगी स्थानीय स्थिति को और भड़काती है। इसलिए, कठुआ जेल में उनकी नजरबंदी प्रशासन के लिए कानून-व्यवस्था बनाए रखने का एक आवश्यक कदम था।
राजनीतिक प्रदर्शन और उसके नतीजे
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह का श्रीनगर जाकर मेहराज मलिक की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन करना और इसे 'संवैधानिक अधिकार' बताना, वास्तव में घाटी के संवेदनशील माहौल में आग में घी डालने जैसा था। यह विरोध एक स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि एक सुनियोजित राजनीतिक प्रदर्शन प्रतीत होता है। संजय सिंह का प्रयास था कि वह फारूक अब्दुल्ला जैसे पुराने नेता के साथ खड़े होकर राष्ट्रीय स्तर पर 'लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला' का नैरेटिव बनाएं। लेकिन इस कदम से आम जनता में भ्रम फैलने और माहौल और बिगड़ने की संभावना बढ़ गई।
कश्मीर की राजनीति की नाजुकता
डोडा और श्रीनगर की घटनाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि कश्मीर की राजनीति अब भी बेहद नाज़ुक है। विपक्षी दल सरकार के फैसलों को 'लोकतंत्र पर हमला' बताकर जनता में सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं। प्रशासन का तर्क है कि सुरक्षा और शांति सर्वोपरि है। फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला जैसे नेता इसे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन मानते हैं, जबकि प्रशासन का मानना है कि कानून-व्यवस्था से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इस पूरे घटनाक्रम ने घाटी की राजनीति में एक नया उबाल पैदा किया है, जहाँ 'लोकतांत्रिक अधिकार बनाम सुरक्षा' की बहस फिर से उभर आई है।
राजनीतिक जिम्मेदारी और आचरण
संजय सिंह और मेहराज मलिक का मामला यह दर्शाता है कि कश्मीर में राजनीति करना केवल वोटों की राजनीति नहीं है, बल्कि शांति और सुरक्षा से भी जुड़ा है। मेहराज मलिक की गिरफ्तारी प्रशासनिक दृष्टि से उचित कदम था, लेकिन इसके बाद नेताओं का राजनीतिक नाटक इस बात का प्रमाण है कि कुछ ताकतें कश्मीर की नाज़ुक सामाजिक संरचना को अपने लाभ के लिए भड़काने से पीछे नहीं हटेंगी। असली सवाल यही है कि क्या राजनीतिक दल कश्मीर की ज़मीन पर जिम्मेदाराना भूमिका निभाएँगे, या फिर स्थानीय हालात को अपनी पार्टी की राजनीति का हथियार बनाएँगे?
जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी
यह समझना आवश्यक है कि जनप्रतिनिधि बनने के लिए केवल चुनाव जीतना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि आचरण और शिष्टता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। यदि मेहराज मलिक पर प्रशासनिक अधिकारियों और महिलाओं के खिलाफ अभद्र भाषा के प्रयोग के आरोप सही हैं, तो यह न केवल नैतिक रूप से निंदनीय है बल्कि जनप्रतिनिधित्व की गरिमा पर भी धब्बा है। एक विधायक का दायित्व समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करना होता है, न कि अशोभनीय आचरण से सार्वजनिक जीवन को दूषित करना। ऐसे व्यक्ति पर यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या वह वास्तव में जनता का प्रतिनिधित्व करने योग्य है।
संजय सिंह का प्रदर्शन
संजय सिंह का श्रीनगर सर्किट हाउस में फारूक अब्दुल्ला से मिलने से रोके जाने पर दरवाजे पर चढ़ना और पुलिस से बहस करना भी राजनीतिक परिपक्वता की बजाय नौटंकी जैसा लगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध दर्ज कराने के कई शांतिपूर्ण और गरिमापूर्ण तरीके हो सकते हैं, लेकिन सांसद होकर सार्वजनिक मंच पर इस तरह का प्रदर्शन करना न केवल उनकी गंभीरता पर प्रश्नचिह्न लगाता है बल्कि संवेदनशील कश्मीर जैसे क्षेत्र में तनाव बढ़ाने का काम भी करता है।
शांति और संवाद का महत्व
कश्मीर की परिस्थितियाँ पहले ही बेहद नाज़ुक हैं। ऐसे में नेताओं का दायित्व यह होना चाहिए कि वे शांति और संवाद का माहौल बनाएं। लेकिन जब जनप्रतिनिधि ही अभद्र भाषा और अशोभनीय हरकतों में उलझे दिखाई दें, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चिंता का विषय बन जाता है।