जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से बातचीत पर महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के बीच राजनीतिक टकराव

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में पाकिस्तान से बातचीत का मुद्दा फिर से गरमा गया है। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पाकिस्तान के साथ संवाद की आवश्यकता पर जोर दिया, जबकि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसका विरोध किया। यह टकराव न केवल कश्मीर में राजनीतिक ध्रुवीकरण को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद क्षेत्रीय दल अपनी रणनीतियों को कैसे आगे बढ़ा रहे हैं। महबूबा मुफ्ती का रुख शांति की ओर है, जबकि उमर अब्दुल्ला सुरक्षा के दृष्टिकोण से अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहते हैं।
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जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से बातचीत पर महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के बीच राजनीतिक टकराव

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में पाकिस्तान से बातचीत का मुद्दा

जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के साथ संवाद का विषय हमेशा से संवेदनशील रहा है। यह मुद्दा तब फिर से उभरा जब पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पाकिस्तान से बातचीत की आवश्यकता पर जोर दिया। इस पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जो लोग पाकिस्तान से बातचीत का समर्थन कर रहे हैं, वे खुद कमजोर हो रहे हैं। यह बयानबाज़ी न केवल कश्मीर में राजनीतिक ध्रुवीकरण को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद क्षेत्रीय दल अपनी राजनीतिक रणनीतियों को किस दिशा में ले जा रहे हैं।


महबूबा मुफ्ती का पाकिस्तान के साथ संवाद का समर्थन

महबूबा मुफ्ती का नाम आते ही पाकिस्तान से बातचीत की वकालत और उनके नरम रुख पर चर्चा शुरू हो जाती है। सवाल यह है कि महबूबा मुफ्ती बार-बार पाकिस्तान के साथ संवाद का समर्थन क्यों करती हैं? इसके पीछे कई राजनीतिक और सामाजिक कारण हैं। महबूबा खुद को कश्मीरियों की आवाज़ मानती हैं और उनका मानना है कि बातचीत ही कश्मीर में शांति लाने का एकमात्र तरीका है। यह विचारधारा पीडीपी के गठन से जुड़ी है, जिसने 2002 से ही हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच पुल बनने का नारा दिया था।


महबूबा मुफ्ती की राजनीतिक रणनीति

महबूबा मुफ्ती का राजनीतिक आधार मुख्य रूप से दक्षिण कश्मीर में है, जहां पाकिस्तान के प्रति भावनात्मक झुकाव रखने वाले लोग भी हैं। पाकिस्तान से बातचीत की वकालत करके, वह इस वर्ग में अपनी स्वीकार्यता बनाए रखना चाहती हैं। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पीडीपी का जनाधार कमजोर हुआ है, इसलिए यह बयानबाज़ी उनके लिए राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहने का एक साधन है। महबूबा अक्सर पाकिस्तान का मुद्दा उठाकर केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाती हैं।


महबूबा मुफ्ती का शांति का संदेश

महबूबा मुफ्ती ने पीडीपी के 26वें स्थापना दिवस पर कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग सम्मान के साथ शांति चाहते हैं और जब पाकिस्तान की बात आती है, तो वे देश की विदेश नीति में हस्तक्षेप करेंगे। उन्होंने केंद्र से अपील की कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों की बात को गंभीरता से सुने। मुफ्ती ने कहा कि अगर भारत को आगे बढ़ना है, तो उसे युद्ध की बातें बंद करनी चाहिए और वार्ता का रास्ता अपनाना चाहिए।


उमर अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने महबूबा मुफ्ती के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जो लोग पाकिस्तान से बातचीत का समर्थन कर रहे हैं, वे कमजोर हो रहे हैं। उनका मानना है कि पाकिस्तान को पहले आतंकवाद के खिलाफ अपने वादों को साबित करना चाहिए। यह बयान उनकी पार्टी की उस रणनीति को दर्शाता है, जिसमें वे भाजपा सरकार की आतंकवाद के प्रति सख्त नीति से अलग नहीं दिखना चाहते।


राजनीतिक ध्रुवीकरण का संकेत

महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के अलग-अलग रुख इस बात का संकेत देते हैं कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति अब भी पहचान-आधारित विमर्श पर टिकी हुई है। महबूबा संवाद की राजनीति के जरिए अपने पारंपरिक जनाधार को बचाने की कोशिश कर रही हैं, जबकि उमर अब्दुल्ला राष्ट्रीय सुरक्षा की भावना से मेल खाकर अपने दल को प्रासंगिक बनाए रखना चाहते हैं। हालांकि वर्तमान में पाकिस्तान से बातचीत की कोई संभावना नहीं दिखती, लेकिन यह मुद्दा कश्मीर की सियासत में राजनीतिक ध्रुवीकरण का एक महत्वपूर्ण औजार बना रहेगा।