जम्मू-कश्मीर में गन लाइसेंस घोटाले में 8 IAS अधिकारियों पर कार्रवाई की तैयारी
गन लाइसेंस घोटाले की जांच में CBI की भूमिका
सांकेतिक तस्वीर
जम्मू-कश्मीर में करोड़ों रुपये के गन लाइसेंस घोटाले में आठ IAS अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए CBI ने होम मिनिस्ट्री से अनुमति मांगी है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण पल्ली और जस्टिस राजेश ओसवाल की डिवीजन बेंच को इस संबंध में जानकारी दी गई है।
DSGI विशाल शर्मा ने बताया कि J&K सरकार और CBI ने मंत्रालय द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण का उत्तर 26 सितंबर और 14 अक्टूबर को दे दिया है। उन्होंने बेंच को यह भी बताया कि मंत्रालय इस मामले पर सक्रिय रूप से विचार कर रहा है। जल्द ही कोई फॉर्मल निर्णय की उम्मीद है। फिलहाल, DSGI ने थोड़ी देर की मोहलत मांगी है, जिसके बाद बेंच ने मामले को 30 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दिया है।
8 IAS अधिकारियों पर संदेह
गृह मंत्रालय (MHA) ने 7 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि जम्मू-कश्मीर में एक बड़ा गन लाइसेंस घोटाला हुआ है, जिसमें करोड़ों रुपये की रिश्वत लेकर फर्जी लाइसेंस जारी किए गए थे। इस मामले की जांच CBI कर रही है। CBI को संदेह है कि इसमें 8 प्रमुख IAS अधिकारी शामिल थे, जो हथियार डीलरों के साथ जुड़े हुए थे। गृह मंत्रालय ने CBI से अधिकारियों को हथियार डीलरों से जोड़ने के लिए ठोस सबूत मांगे थे।
जिन अधिकारियों के नाम रिपोर्ट में शामिल हैं, उन्होंने 2012 और 2016 के बीच कठुआ, उधमपुर, राजौरी, बारामूला, पुलवामा, कारगिल और लेह में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य करते हुए गन लाइसेंस जारी किए थे। प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत IAS अधिकारियों पर आरोप लगाने के लिए प्रॉसिक्यूशन की मंजूरी आवश्यक है।
घोटाले की राशि 100 करोड़ रुपये से अधिक
इस मामले में CBI की रिक्वेस्ट J&K सरकार ने MHA को भेजी थी। इस मामले में कथित तौर पर शामिल कश्मीर एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (KAS) अधिकारियों और अन्य निचले स्तर के कर्मचारियों के खिलाफ प्रॉसिक्यूशन की मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है। CBI 2012 से 2016 के बीच जब J&K एक राज्य था, की जांच कर रही है।
डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, डिप्टी कमिश्नर और लाइसेंसिंग अधिकारियों ने ‘पैसे के लालच‘ से 2.74 लाख से अधिक गन लाइसेंस जारी करने में हुई गड़बड़ियों की जांच की जा रही है। एजेंसियों का अनुमान है कि यह कथित घोटाला 100 करोड़ रुपये से अधिक का है। इसमें कई हथियार ‘गैर-कानूनी‘ तरीके से हथियारबंद और पैरामिलिट्री के जवानों को जारी किए गए थे, जो न तो उस समय राज्य के निवासी थे और न ही संबंधित जिलों में तैनात थे।
