जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों की सख्त कार्रवाई

सुरक्षा बलों की मुहिम
जम्मू-कश्मीर एक बार फिर सुरक्षा एजेंसियों की सजगता और दृढ़ता का गवाह बना है। कुलगाम में आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में एक आतंकवादी को मार गिराया गया, जबकि एक सैनिक घायल हुआ। यह घटना दर्शाती है कि घाटी में आतंक फैलाने की कोशिशें अभी भी जारी हैं, लेकिन भारतीय सुरक्षा बल पूरी ताकत से इसका सामना कर रहे हैं। इसके अलावा, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने पांच राज्यों और जम्मू-कश्मीर में एक साथ 22 स्थानों पर छापे मारकर आतंकवादी नेटवर्क को कमजोर करने का प्रयास किया है। इसी बीच, अंतरराष्ट्रीय सीमा पर एक पाकिस्तानी घुसपैठिए की गिरफ्तारी ने यह साबित कर दिया है कि आतंकवाद को पड़ोसी देश से लगातार समर्थन मिलता रहा है।
अज्ञात कब्रों का अध्ययन
इन घटनाओं के बीच, उत्तर कश्मीर में हालिया अध्ययन ने एक महत्वपूर्ण तथ्य को उजागर किया है। अज्ञात कब्रों के बारे में वर्षों से फैली भ्रांतियाँ अब झूठी साबित हो गई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 90 प्रतिशत से अधिक कब्रें आतंकवादियों की हैं, न कि निर्दोष नागरिकों की। यह तथ्य उन शक्तियों को आईना दिखाता है, जो कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मानवाधिकार हनन का झूठा आरोप लगाकर बदनाम करने की कोशिश करती रही हैं। उत्तर कश्मीर में 4,056 अज्ञात कब्रों में से 90 प्रतिशत से अधिक कब्रें आतंकवादियों की हैं। यह जानकारी 'अनरेवलिंग द ट्रुथ: ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ अनमार्क एंड अनआइडेंटिफाइड ग्रेव्स इन कश्मीर' शीर्षक वाली रिपोर्ट पर आधारित है, जिसे कश्मीर स्थित गैर-सरकारी संगठन 'सेव यूथ सेव फ्यूचर फाउंडेशन' ने तैयार किया है।
शोधकर्ताओं की मेहनत
वजाहत फारूक भट, जाहिद सुल्तान, इरशाद अहमद भट, अनिका नजीर, मुद्दसिर अहमद डार और शब्बीर अहमद की अगुवाई में शोधकर्ताओं ने उत्तर कश्मीर के सीमावर्ती जिलों- बारामूला, कुपवाड़ा और बांदीपोरा तथा मध्य कश्मीर के गंदेरबल में 373 कब्रिस्तानों का निरीक्षण किया। वजाहत फारूक भट ने कहा, 'हमारे संगठन ने 2018 में इस अध्ययन पर काम करना शुरू किया और 2024 में इसका आधारभूत कार्य पूरा किया। यह रिपोर्ट कश्मीर घाटी में आतंकवाद के बारे में फैली भ्रांतियों को खंडित करने में सक्षम है।' इस अध्ययन में जीपीएस टैगिंग, फोटोग्राफिक रिकॉर्ड, बयान और आधिकारिक अभिलेखों का विश्लेषण किया गया।
कब्रों की वास्तविकता
शोधकर्ताओं ने कुल 4,056 कब्रों का दस्तावेजीकरण किया, जो निहित स्वार्थ वाले समूहों द्वारा किए गए दावों से भिन्न हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि 2,493 कब्रें (लगभग 61.5 प्रतिशत) विदेशी आतंकवादियों की हैं, जो आतंकवाद-रोधी अभियानों में मारे गए। इनमें से कई आतंकवादियों के पास पहचान पत्र नहीं होते थे, जिससे उनका नेटवर्क छिपा रहता था। लगभग 1,208 कब्रें (लगभग 29.8 प्रतिशत) स्थानीय आतंकवादियों की थीं। रिपोर्ट में केवल नौ कब्रें ऐसी मिलीं, जिनमें नागरिकों की पुष्टि हुई, जो कुल कब्रों का मात्र 0.2 प्रतिशत है।
निष्कर्ष
फाउंडेशन के अनुसार, यह निष्कर्ष सामूहिक नागरिक कब्रों के दावों का खंडन करता है और दर्शाता है कि न्यायेतर हत्याओं के आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। अध्ययन में 1947 के कश्मीर युद्ध के दौरान मारे गए आदिवासी आक्रमणकारियों की 70 कब्रों की पहचान की गई। वजाहत फारूक भट ने कहा कि 276 वास्तविक अचिह्नित कब्रों की व्यापक फोरेंसिक जांच की आवश्यकता है। यह अध्ययन दर्शाता है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद की जमीन सिकुड़ रही है और राष्ट्रवाद की जड़ें गहरी हो रही हैं।