जम्मू-कश्मीर में 25 पुस्तकों पर प्रतिबंध: अरुंधति रॉय की 'आज़ादी' भी शामिल

जम्मू-कश्मीर प्रशासन का नया आदेश
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका अरुंधति रॉय की प्रसिद्ध पुस्तक 'आज़ादी' सहित कुल 25 पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। गृह विभाग द्वारा जारी आदेश में इन पुस्तकों को 'भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा' बताया गया है, जिसके चलते इनका स्वामित्व, बिक्री और वितरण जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है। यह आदेश भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 98 के तहत जारी किया गया है, जो प्रशासन को ऐसी सामग्री को 'जब्त' करने और संबंधित स्थानों पर तलाशी लेने का अधिकार देता है.
पुस्तकों पर प्रतिबंध का कारण
गृह विभाग के अनुसार, खुफिया एजेंसियों और जांच के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि इन पुस्तकों में ऐसे विचार और आख्यान शामिल हैं जो युवाओं को राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों की ओर प्रेरित करते हैं। सरकार का कहना है कि इन पुस्तकों में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है, आतंकवादियों का महिमामंडन किया गया है, सुरक्षा बलों को बदनाम करने का प्रयास किया गया है, और धार्मिक कट्टरता तथा अलगाववाद को बढ़ावा दिया गया है।
प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची
प्रतिबंधित पुस्तकों में अरुंधति रॉय की 'आज़ादी', तारिक अली और पंकज मिश्रा की 'Kashmir: The Case for Freedom', क्रिस्टोफर स्नेडन की 'Independent Kashmir', और इमाम हसन अल-बन्ना की 'Mujahid Ki Azan' शामिल हैं। प्रशासन ने इन पुस्तकों को 'जब्त की गई सामग्री' घोषित करते हुए कहा है कि अब ये किसी भी व्यक्ति या संस्था की संपत्ति नहीं मानी जाएंगी। इन्हें रखने, बेचने या प्रचारित करने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
सुरक्षा नीति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
यह कदम सरकार की सुरक्षा नीति का हिस्सा है, लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस पर सवाल उठाया है कि यह साहित्यिक प्रतिबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। जम्मू-कश्मीर एक ऐसा क्षेत्र है जहां राजनीतिक अस्थिरता, आतंकवाद और अलगाववाद का प्रभाव रहा है, इसलिए वहां युवाओं को प्रभावित करने वाले साहित्य और मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है।
भविष्य की चुनौतियाँ
अरुंधति रॉय जैसी विवादास्पद लेखिका की पुस्तक पर प्रतिबंध लगाना एक महत्वपूर्ण कदम है। अब यह देखना होगा कि आने वाले समय में इस प्रतिबंध को कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर कैसे चुनौती दी जाती है।