छोटी दिवाली की कथा: नरक चतुर्दशी का महत्व और पूजा विधि

छोटी दिवाली, जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है, हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के वध की कथा सुनाई जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस अवसर पर यमराज और हनुमान जी की पूजा की जाती है, और दक्षिण दिशा में यम दीपक जलाने की परंपरा है। जानें इस दिन की विशेषताएं और पूजा विधि के बारे में।
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छोटी दिवाली की कथा: नरक चतुर्दशी का महत्व और पूजा विधि

छोटी दिवाली की कथा

छोटी दिवाली की कथा: नरक चतुर्दशी का महत्व और पूजा विधि


नरक चतुर्दशी कथा


छोटी दिवाली की कथा: नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है, हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और भगवान हनुमान की पूजा की जाती है। इसके साथ ही, दक्षिण दिशा में यम दीपक जलाने की परंपरा भी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दीपक को जलाने से यमराज परिवार को अकाल मृत्यु से बचाते हैं। इस वर्ष, छोटी दिवाली 19 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस अवसर पर छोटी दिवाली की कथा सुनना या पढ़ना अत्यंत शुभ माना जाता है। आइए, हम छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी की कथा को पढ़ते हैं।


छोटी दिवाली की कथा (Chhoti Diwali Katha)


छोटी दिवाली की कथा भगवान श्रीकृष्ण और राक्षस नरकासुर के वध से जुड़ी हुई है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में छोटी दिवाली मनाई जाने लगी और इस दिन दीप जलाए जाने लगे। आइए, इस कथा को विस्तार से जानते हैं।


नरक चतुर्दशी की कथा (Narak Chaturdashi Vrat Katha)


प्राचीन काल में नरकासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस था, जिसने तीनों लोकों में आतंक फैला रखा था। उसने देवताओं से मणि छीन ली, इंद्रदेव से उनका कुंडल छीन लिया और पृथ्वी पर कई कन्याओं को बंदी बना लिया, जिनमें लगभग 16,000 कन्याएं शामिल थीं।


नरकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर इंद्रदेव ने भगवान कृष्ण से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने कृष्ण का रूप धारण किया और नरकासुर के आतंक को समाप्त करने का निर्णय लिया। ऐसा माना जाता था कि नरकासुर को यह वरदान मिला था कि उसकी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों ही हो सकती है।


इसलिए, भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उनके सहयोग से नरकासुर का वध किया। नरकासुर का वध करने के बाद, भगवान कृष्ण ने उसकी कैद से 16,100 कन्याओं को मुक्त किया। नरकासुर के वध की खुशी में लोगों ने दीप जलाए। धार्मिक मान्यता है कि युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने खुद तेल से स्नान किया था, इसलिए आज भी इस दिन तेल और उबटन लगाकर स्नान करने की परंपरा है।