चीन में पीएम मोदी की कार: रूस-चीन संबंध का संकेत

पीएम मोदी की यात्रा के दौरान उपयोग की गई कार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक के दौरान, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पसंदीदा कार, हांगकी, का उपयोग किया गया। यह कार उनके दो दिवसीय तियानजिन प्रवास के दौरान शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के लिए थी।
हांगकी L5 का उपयोग शी ने 2019 में महाबलीपुरम में पीएम मोदी से मिलने के दौरान भी किया था। यह कार चीन के लिए प्रतीकात्मक महत्व रखती है, जिसका इतिहास 1958 से जुड़ा है, जब राज्य के स्वामित्व वाली फर्स्ट ऑटोमोटिव वर्क्स (FAW) ने इसे कम्युनिस्ट पार्टी के अभिजात वर्ग के लिए लॉन्च किया।
हांगकी L5 की विशेषताएँ
हांगकी L5 एक उच्च श्रेणी की लक्जरी सेडान है, जिसमें क्लासिक चीनी लिमोज़ीन से प्रेरित विशिष्ट रेट्रो डिज़ाइन है। इसकी भव्य आंतरिक सज्जा लकड़ी और चमड़े के इनसेट्स से भरी हुई है। कुछ वेरिएंट्स में सोने और क्रिस्टल जैसे प्रीमियम सामग्रियों का उपयोग किया गया है, जिससे यात्रियों को एक अनोखा अनुभव मिलता है।
इस कार में 4.0L ट्विन-टर्बो V8 या 6.0L V12 इंजन का विकल्प होता है। इसकी कीमतें पीढ़ी और बाजार के अनुसार भिन्न होती हैं और नवीनतम मॉडल के लिए $680,000 से अधिक हो सकती हैं, जिससे यह सबसे महंगी सेडान में से एक बन जाती है।
मुख्य विनिर्देश और सांस्कृतिक महत्व
यह कार स्वचालित ट्रांसमिशन के साथ 4.0L ट्विन-टर्बो V8 और 6.0L V12 इंजन के विकल्प में उपलब्ध है। इसकी स्टीयरिंग व्हील पर चीनी पाठ का होना इस वाहन की सांस्कृतिक महत्वता को दर्शाता है। यह कार चीन की ऑटोमोटिव विरासत का प्रतीक मानी जाती है। पीएम मोदी के लिए इसका उपयोग देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने की संभावनाओं को दर्शाता है।
हांगकी, FAW समूह के अंतर्गत आता है, जो 15 जुलाई 1953 को चांगचुन, जिलिन में स्थापित एक चीनी राज्य के स्वामित्व वाला ऑटोमोबाइल निर्माता है। FAW समूह के पास बेस्ट्यून भी है।
इतिहास और भविष्य की संभावनाएँ
FAW समूह का इतिहास सोवियत संघ से सहायता से भरा हुआ है, जिसने शुरुआती वर्षों में तकनीकी समर्थन, उपकरण और उत्पादन मशीनरी प्रदान की। पहले कारखाने के खुलने से पहले, 39 चीनी FAW कर्मचारी ट्रक उत्पादन में प्रशिक्षण के लिए स्टालिन ट्रक फैक्ट्री गए थे।
हालांकि ये विवरण आज के समय में सामान्य लग सकते हैं, लेकिन ये एक ऐसे सहयोग की याद दिलाते हैं, जो यदि पुनर्जीवित किया जाए, तो रूस, भारत और चीन के संबंधों के लिए एक गहरा भविष्य ला सकता है।