चारा घोटाला: बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा स्कैंडल

चारा घोटाला, जो 950 करोड़ रुपये के गबन से जुड़ा है, बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया। इस घोटाले ने मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की कुर्सी छीन ली और कई बड़े नामों को जांच के दायरे में लाया। जानें इस घोटाले की शुरुआत, इसके प्रमुख मामलों और लालू यादव पर चल रहे मुकदमों के बारे में।
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चारा घोटाला: बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा स्कैंडल

चारा घोटाले की कहानी

चारा घोटाला: बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा स्कैंडल


चारा घोटाला: भारत में घोटालों की कई कहानियाँ प्रचलित हैं, लेकिन आज हम एक विशेष और चर्चित घोटाले के बारे में चर्चा करेंगे, जिसे 'चारा घोटाला' के नाम से जाना जाता है। यह मामला 950 करोड़ रुपये के गबन से संबंधित है, जिसने एक मुख्यमंत्री की कुर्सी को हिला दिया और बिहार की राजनीतिक दिशा को बदल दिया। आइए जानते हैं इस घोटाले की पूरी कहानी।


1970 के दशक में, बिहार के पशुपालन विभाग में सरकारी खर्च के नाम पर फर्जी बिल बनाना शुरू हुआ। शुरुआत में यह छोटी-मोटी हेराफेरी थी, लेकिन धीरे-धीरे इसमें अधिकारियों, सप्लायर्स और नेताओं की मिलीभगत बढ़ती गई। सरकार पशुओं के चारे, दवाओं और उपकरणों के लिए पैसे देती थी, लेकिन असल में इन पैसों का उपयोग कभी नहीं किया गया।


घोटाले का खुलासा:
बिहार के पत्रकार रवि एस. झा ने इस घोटाले को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया। उनकी रिपोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इसमें केवल अधिकारी ही नहीं, बल्कि कई नेता भी शामिल थे। इस खुलासे ने घोटाले की सच्चाई को सामने ला दिया, जिसमें दिखाया गया कि कैसे सरकारें और ठेकेदार मिलकर बिहार के संसाधनों का दुरुपयोग कर रहे थे।


जनता के दबाव और अदालत की निगरानी में, मार्च 1996 में पटना हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। जांच के दौरान कई बड़े नाम सामने आए, जिनमें मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा शामिल थे। धीरे-धीरे यह मामला 50 से अधिक केसों में फैल गया।


950 करोड़ का गबन:
सीबीआई ने 10 मई 1997 को लालू प्रसाद यादव पर मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी, जिसे राज्यपाल ने मंजूरी दी। इस बीच, लालू के करीबी अधिकारी और मंत्री भी जांच के दायरे में आ गए। लालू ने अग्रिम जमानत की याचिका दायर की, जो खारिज कर दी गई।


जैसे ही गिरफ्तारी का खतरा बढ़ा, लालू ने 5 जुलाई 1997 को अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की स्थापना की और जनता दल से अलग हो गए। 25 जुलाई को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को नया मुख्यमंत्री बना दिया।


लालू का बुरा समय शुरू हो चुका था। 1997 में उन्हें गिरफ्तार किया गया और रांची जेल में रखा गया। इसके बाद 1998 और 2000 में उन्हें विभिन्न मामलों में फिर से गिरफ्तार किया गया।


घोटाले की सुनवाई:
2000 के बाद चारा घोटाले से जुड़े 53 मामलों की सुनवाई शुरू हुई। मई 2013 तक 44 केसों का निपटारा हो चुका था, जिसमें 500 से अधिक आरोपी दोषी पाए गए। लालू प्रसाद यादव को कुल 14 साल की सजा सुनाई गई। 6 जनवरी 2018 को उन्हें साढ़े तीन साल की कैद और 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।


लालू की कुर्सी का कारण:
सीबीआई ने चारा घोटाले के कुल 66 मामले दर्ज किए, जिनमें से 53 झारखंड और बाकी बिहार में ट्रांसफर हुए। लालू यादव को 5 मामलों में दोषी ठहराया गया है। यह घोटाला उनके मुख्यमंत्री रहते हुए हुआ था।


घोटाले के प्रमुख मामले:
चाईबासा कोषागार केस: 37.70 करोड़ रुपये का गबन, 5 साल की सजा।
देवघर कोषागार केस: 89.27 लाख रुपये का गबन, 3.5 साल की सजा।
दुमका कोषागार केस: 3.13 करोड़ रुपये का गबन, 14 साल की सजा।
डोरंडा कोषागार केस: 139.35 करोड़ रुपये का गबन, 5 साल की सजा।
रांची कोषागार केस: 1.84 करोड़ रुपये का गबन, सुनवाई जारी है।


लालू यादव पर चल रहे मामले:
इन सभी मामलों के गबन को जोड़ने पर लालू यादव की देनदारी लगभग 304 करोड़ रुपये होगी। इसका मतलब है कि यदि बिहार सरकार कोर्ट में अपना दावा मजबूत तरीके से रखती है, तो लालू यादव को यह राशि सरकारी खजाने में जमा करनी होगी।