ग्रेटर नोएडा में जल संरक्षण के लिए 12 किमी लंबी पाइपलाइन का निर्माण

ग्रेटर नोएडा में जल संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है, जहां 12 किमी लंबी पाइपलाइन का निर्माण किया गया है। यह पाइपलाइन पार्कों और वाणिज्यिक इकाइयों को उपचारित जल प्रदान करेगी, जिससे भूजल पर निर्भरता कम होगी। इस परियोजना से न केवल शहरी हरियाली को लाभ होगा, बल्कि उद्योगों को भी एक पर्यावरण के अनुकूल जल स्रोत मिलेगा। जानें इस परियोजना के अन्य लाभों के बारे में।
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ग्रेटर नोएडा में जल संरक्षण के लिए 12 किमी लंबी पाइपलाइन का निर्माण

ग्रेटर नोएडा में जल संरक्षण की पहल

ग्रेटर नोएडा समाचार: ग्रेटर नोएडा के निवासियों के लिए एक अच्छी खबर है, क्योंकि प्राधिकरण ने भूजल संरक्षण की दिशा में कदम बढ़ाया है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ, रवि कुमार एनजी की पहल और एसीईओ प्रेर्णा सिंह की देखरेख में जल-सीवर विभाग ने कसना एसटीपी से ईचछर तक उपचारित जल की वितरण लाइन बिछाई है। यह कार्य शनिवार को पूरा हुआ।


12 किमी लंबी पाइपलाइन का निर्माण

12 किमी लंबी पाइपलाइन बिछाई गई


एक 12 किमी लंबी पाइपलाइन बिछाई गई है, जिसका उपयोग पार्कों और हरे क्षेत्रों की सिंचाई के लिए किया जाएगा। इसके अलावा, वाणिज्यिक इकाइयों की जल आवश्यकताओं को भी उपचारित जल से पूरा किया जा सकेगा। इससे भूजल पर निर्भरता कम होगी और जल संरक्षण को मजबूती मिलेगी। इसके अलावा, भविष्य में कई अन्य स्थानों पर भी इस पाइपलाइन को बिछाने की योजना है।


भूजल की आवश्यकता नहीं

भूजल की आवश्यकता नहीं


ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के जल विभाग के वरिष्ठ प्रबंधक, राजेश कुमार ने बताया कि अब तक ईचछर के पार्कों और हरे क्षेत्रों की सिंचाई के लिए भूजल का उपयोग किया जा रहा था। लेकिन अब सिंचाई इस उपचारित पाइपलाइन से आने वाले जल से की जाएगी। इसके लिए एक सीधा कनेक्शन दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि उपचारित जल को निकटवर्ती औद्योगिक क्षेत्रों जैसे इकोटेक-1 एक्सटेंशन में भी आवश्यकतानुसार आपूर्ति की जाएगी। यदि उद्योगों को इस जल लाइन से आपूर्ति की आवश्यकता होती है, तो छोटे पाइपलाइनों के माध्यम से कनेक्शन दिया जाएगा।


हरित क्षेत्र और उद्योग को लाभ

हरित क्षेत्र और उद्योग को लाभ


यह परियोजना दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों को एक साथ लाभ पहुंचाने के लिए तैयार की गई है। शहरी हरियाली की सिंचाई के लिए एक वैकल्पिक जल स्रोत उपलब्ध होगा, जबकि उद्योगों को उत्पादन में उपयोग के लिए एक कम लागत और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प मिलेगा। जल संकट और गिरते भूजल स्तर को देखते हुए, ऐसे परियोजनाएं भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।