ग्रेटर नोएडा में कचरे से बनेगा ग्रीन हाइड्रोजन, ऊर्जा का नया स्रोत

ग्रेटर नोएडा में एक नई परियोजना के तहत कचरे से ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाएगा, जो न केवल प्रदूषण को कम करेगा बल्कि ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। एनटीपीसी के NETRA परिसर में स्थापित इस प्लांट में आधुनिक प्लाज्मा गैसीफिकेशन तकनीक का उपयोग किया जाएगा, जिससे प्रतिदिन 1 टन हाइड्रोजन का उत्पादन होगा। यह परियोजना कचरा प्रबंधन की चुनौतियों का समाधान प्रदान करेगी और भारत के नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को नई गति देगी।
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ग्रेटर नोएडा में ऊर्जा का नया युग

ग्रेटर नोएडा अब केवल अपनी ऊँची इमारतों और एक्सप्रेसवे के लिए नहीं, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में एक नई क्रांति लाने के लिए भी पहचाना जाएगा। यहाँ के कचरे से 'ग्रीन हाइड्रोजन' का उत्पादन किया जाएगा। एनटीपीसी के NETRA परिसर में इस महत्वाकांक्षी परियोजना का कार्य प्रारंभ हो चुका है, जो न केवल प्रदूषण को कम करेगा, बल्कि भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को भी पूरा करेगा।


हर दिन 1 टन हाइड्रोजन का उत्पादन

इस प्लांट की एक प्रमुख विशेषता इसकी उत्पादन क्षमता है। अधिकारियों के अनुसार, यहाँ आधुनिक प्लाज्मा गैसीफिकेशन तकनीक का उपयोग करके प्रतिदिन लगभग 1 टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाएगा। यह प्लांट पूरी तरह से शहर के ठोस कचरे और आसपास के कृषि अवशेषों पर आधारित होगा। इस कचरे को उच्च तापमान पर प्रोसेस कर हाइड्रोजन गैस निकाली जाएगी, जिसे बाद में ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकेगा।


प्रदूषण से मुक्ति और आत्मनिर्भर ऊर्जा

ग्रेटर नोएडा और दिल्ली-एनसीआर में कचरा प्रबंधन एक बड़ी चुनौती रही है। इस प्लांट के शुरू होने से शहर के कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण संभव होगा। एनटीपीसी के NETRA केंद्र में स्थापित होने वाला यह प्लांट तकनीक के मामले में दुनिया के सबसे आधुनिक प्लांटों में से एक होगा।


प्लाज्मा ऑक्सी-गैसीफिकेशन तकनीक

यह प्लांट की मुख्य तकनीक है। सामान्य कचरा जलाने के बजाय, यहाँ कचरे को प्लाज्मा टॉर्च की मदद से 5000 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर गर्म किया जाता है। इस प्रक्रिया से हाइड्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड का मिश्रण उत्पन्न होता है, जिसे 'सिन-गैस' कहा जाता है।


कचरे से ऊर्जा का गणित

इस प्लांट का डिज़ाइन अत्यधिक कुशल है। प्रतिदिन लगभग 25 टन ठोस कचरे या कृषि अवशेषों से 1 टन शुद्ध ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन होगा। हाइड्रोजन निकालने के बाद बचे हुए कार्बन मोनोऑक्साइड गैस का उपयोग बिजली उत्पादन में किया जाएगा।