गोवर्धन पर्वत की पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व
गोवर्धन पर्वत का महत्व
गोवर्धन पर्वत, जिसे गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है, उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित है और इसे धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसकी परिक्रमा, जो लगभग 21 किलोमीटर लंबी है, भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि इस पर्वत की परिक्रमा करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि किसी श्राप के कारण गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई प्रतिदिन तिल के बराबर घटती जा रही है।
गोवर्धन पूजा, दीपावली के अगले दिन मनाई जाती है। इस दिन भक्त भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं और गोवर्धन पर्वत की विशेष आराधना की जाती है।
गोवर्धन पर्वत की पौराणिक कथा
पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार, ऋषि पुलस्त्य तीर्थयात्रा पर निकले और गोवर्धन पर्वत की सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने सोचा कि इस पर्वत को काशी ले जाकर वहां पूजा-अर्चना करेंगे। इसके लिए उन्होंने द्रोणाचल पर्वत से गोवर्धन को ले जाने की अनुमति मांगी।
द्रोणाचल ने अनुमति तो दी, लेकिन पुत्र-वियोग से दुखी भी हुए। गोवर्धन पर्वत ने शर्त रखी कि जहां भी उन्हें रखा जाएगा, वहीं वे स्थायी रूप से स्थापित हो जाएंगे। ऋषि ने इस शर्त को स्वीकार किया और अपने तपोबल से गोवर्धन पर्वत को उठाकर काशी की ओर चल पड़े।
वचन भंग और श्राप
यात्रा के दौरान जब ऋषि ब्रज पहुंचे, तो गोवर्धन पर्वत ने इच्छा जताई कि वे यहीं बसना चाहते हैं ताकि भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के साक्षी बन सकें। इसके लिए उन्होंने अपना भार बढ़ाना शुरू किया। थकान महसूस होने पर ऋषि ने पर्वत को नीचे रखा और इस प्रकार वे अपने वचन को भूल गए। जब उन्होंने फिर से पर्वत को उठाने की कोशिश की, तो गोवर्धन ने उन्हें उनकी दी हुई शर्त याद दिलाई। इस पर ऋषि पुलस्त्य क्रोधित हो गए और गोवर्धन पर्वत को श्राप दे दिया कि अब प्रतिदिन तिल-तिल कर तुम्हारा क्षरण होगा और एक दिन तुम पूरी तरह से धरती में समा जाओगे।