गुरुग्राम में पिता की न्याय की खोज: बेटे की मौत के मामले में संघर्ष

गुरुग्राम में जीतेंद्र चौधरी ने अपने बेटे अमित की असामयिक मृत्यु के बाद न्याय की खोज में एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। 2015 में हुए एक हादसे के बाद, जब पुलिस ने मामले को बंद कर दिया, तो जीतेंद्र ने खुद ही गुनहगार की तलाश शुरू की। उनकी मेहनत और संघर्ष ने अदालत का ध्यान आकर्षित किया, जिसने मामले की फिर से जांच का आदेश दिया। जानिए इस पिता की दिल दहला देने वाली कहानी और उनके संघर्ष के बारे में।
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गुरुग्राम में पिता की न्याय की खोज: बेटे की मौत के मामले में संघर्ष

एक पिता का दुखद सफर


गुरुग्राम से एक दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई है, जिसमें एक पिता ने अपने बेटे की असामयिक मृत्यु के बाद न्याय की खोज में संघर्ष किया। जीतेंद्र चौधरी, जिन्होंने अपने बेटे अमित चौधरी को हमेशा सहारा दिया, अब उसके गम को अपने दिल में दबाकर कानूनी लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया। 2015 में हुए एक हादसे ने उनके परिवार को बुरी तरह प्रभावित किया।


अमित चौधरी, जो उस समय 10वीं कक्षा में पढ़ रहा था, 5 जून 2015 को अपने चाचा के साथ टहल रहा था, जब एक कार ने उसे टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में उसकी जान चली गई, और उसके माता-पिता के लिए यह एक काला दिन साबित हुआ। पुलिस ने उसी दिन मामला दर्ज किया, लेकिन जब कार और उसके चालक का कोई पता नहीं चला, तो जांच बंद कर दी गई।


पिता की खुद की जांच

जीतेंद्र चौधरी ने पुलिस से बार-बार गुहार लगाई कि वे मामले की फिर से जांच करें, लेकिन जब कोई मदद नहीं मिली, तो उन्होंने खुद ही गुनहगार की तलाश शुरू की। उन्होंने दुर्घटना स्थल पर जाकर एक कार का साइड मिरर पाया और विभिन्न गैराजों से जानकारी जुटाने की कोशिश की। एक मैकेनिक ने बताया कि यह मिरर स्विफ्ट वीडीआई का है।


इस जानकारी के साथ, जीतेंद्र ने 2015 में पुलिस को फिर से जानकारी दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंततः, 2016 में उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया और मामले को फिर से खोलने की अपील की। हालांकि, पुलिस ने फिर से वही जवाब दिया कि कार और चालक का कोई पता नहीं है।


अदालत का हस्तक्षेप

जीतेंद्र ने 2018 में फिर से अदालत में अपील की, लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई। कोविड-19 के कारण उनकी कोशिशों में रुकावट आई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 2023 में, अदालत ने माना कि पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई और मामले की फिर से जांच का आदेश दिया।


हालांकि, पुलिस का रवैया ढीला बना रहा और उन्होंने अदालत को बताया कि जांच अधिकारी उत्तराखंड में हैं। जीतेंद्र चौधरी की यह कहानी न केवल एक पिता के संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि न्याय की खोज में कभी हार नहीं माननी चाहिए।