गुरुग्राम में पिता की न्याय की खोज: बेटे की मौत के मामले में संघर्ष

गुरुग्राम में जीतेंद्र चौधरी ने अपने बेटे अमित की असामयिक मृत्यु के बाद न्याय की खोज में एक कठिन यात्रा शुरू की। 2015 में हुए एक हादसे के बाद, जब पुलिस ने मामले को बंद कर दिया, तो जीतेंद्र ने खुद ही जांच शुरू की। उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया और कई बार अपनी अपील की, लेकिन हर बार उन्हें निराशा का सामना करना पड़ा। 2023 में, अदालत ने उनकी अपील को स्वीकार किया और मामले की फिर से जांच का आदेश दिया। जानें इस पिता की संघर्ष की कहानी और न्याय की खोज में उनकी मेहनत।
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गुरुग्राम में पिता की न्याय की खोज: बेटे की मौत के मामले में संघर्ष

एक पिता का दुखद सफर


गुरुग्राम में एक पिता के लिए अपने बेटे को अंतिम विदाई देना अत्यंत कठिनाई भरा अनुभव है। जीतेंद्र चौधरी ने अपने बेटे अमित चौधरी की असामयिक मृत्यु के बाद न्याय की खोज में एक लंबी कानूनी लड़ाई शुरू की। 2015 में हुए एक हादसे में अमित की जान चली गई, जब वह अपने चाचा के साथ टहल रहा था और एक कार ने उसे टक्कर मार दी। इस घटना ने उसके परिवार को बुरी तरह प्रभावित किया।


अमित की उम्र उस समय केवल 10वीं कक्षा में पढ़ते हुए 15 वर्ष थी। उसके पिता ने पुलिस से बार-बार गुहार लगाई, लेकिन जब कोई मदद नहीं मिली, तो उन्होंने खुद ही मामले की जांच शुरू करने का निर्णय लिया।


उन्होंने हादसे के स्थल पर जाकर कार का साइड मिरर पाया और विभिन्न गैराजों में जाकर जानकारी जुटाई। एक मैकेनिक ने बताया कि यह मिरर स्विफ्ट वीडीआई का है। इस जानकारी के साथ, जीतेंद्र ने पुलिस को फिर से जानकारी दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।


अदालत का हस्तक्षेप

पुलिस की अनदेखी के कारण, जीतेंद्र ने 2016 में अदालत का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने जूडिशियल मजिस्ट्रेट से मामले को फिर से खोलने की अपील की। हालांकि, पुलिस ने फिर से वही जवाब दिया कि कार और ड्राइवर का कोई पता नहीं है।


2018 में, जीतेंद्र ने अदालत में फिर से याचिका दायर की, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। कोविड-19 के कारण उनकी कोशिशों में रुकावट आई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।


2023 में, जीतेंद्र ने एक बार फिर से अपनी लड़ाई जारी रखी। अदालत ने माना कि पुलिस ने अपनी जिम्मेदारियों का पालन नहीं किया और मामले की फिर से जांच का आदेश दिया।