गुरु रामदास जी: सेवा और भक्ति के प्रतीक

गुरु रामदास जी की कहानी एक अनाथ बालक से सिखों के चौथे गुरु बनने तक की है। उनकी सेवा और भक्ति ने उन्हें गुरु नानक की विचारधारा का सच्चा अनुयायी बना दिया। जानें कैसे उन्होंने अपने जीवन में सेवा के माध्यम से महानता प्राप्त की और अमृतसर जैसे पवित्र शहर की स्थापना की। इस लेख में उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं और शिक्षाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है।
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गुरु रामदास जी: सेवा और भक्ति के प्रतीक

गुरु रामदास जी का जीवन

गुरु रामदास जी: सेवा और भक्ति के प्रतीक

गुरु रामदास जी.

यदि आपने कभी गुरुद्वारे का दौरा किया है, तो आपने देखा होगा कि वहां कई लोग सेवा में लगे रहते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गुरु नानक को सिखों का गुरु बनने का सम्मान सेवा के माध्यम से ही मिला था? जब भाई लहना ने सेवा की, तो गुरु ने उन्हें अपना अंग बना लिया। इसी प्रकार, गुरु अंगद जी ने बाबा अमरदास की सेवा देखकर उन्हें गुरु नानक की गद्दी का उत्तराधिकारी नियुक्त किया। और जब भाई जेठा जी ने सेवा की, तो वे सिखों के चौथे गुरु बने, जिन्हें श्री गुरु रामदास जी कहा जाता है।

यह माना जाता है कि सच्चे मन से की गई सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती। जो सच्चे गुरु की सेवा करता है, वह भक्त बन जाता है, और यदि उसमें सच्चाई हो, तो वह ईश्वर का दिव्य रूप धारण कर लेता है। इसीलिए हर सिख कहता है, 'सतिगुर की सेवा सफल है, जो चित्त लगाकर करे।' इसका अर्थ है कि सच्चे मन से की गई सेवा का फल हमेशा मिलता है।

गुरु रामदास जी का जन्म लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) के चूना मंडी क्षेत्र में हुआ था। वे अपने माता-पिता के सबसे बड़े पुत्र थे, जिन्हें प्यार से जेठा कहा जाता था। जब वे केवल 7 वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता का निधन हो गया।

अनाथ होने के बाद, जेठा जी को उनकी नानी ने बासरके गांव ले जाकर परिवार के काम में मदद करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आर्थिक सहायता के लिए घुंघनी बेचना शुरू किया। बासरके गांव की संगत गुरु अमरदास जी की सेवा में जाती थी। जब जेठा जी लगभग 12 वर्ष के थे, तब वे संगत की सेवा के लिए गोइंदवाल साहिब चले गए।

गोइंदवाल साहिब में सेवा करते हुए, उन्होंने अपने गांव लौटने का विचार त्याग दिया और गुरु अमरदास जी की सेवा में रहने का निर्णय लिया।

लंगर सेवा

गोइंदवाल साहिब में रहते हुए, भाई जेठा जी ने अपने तन-मन को गुरु की सेवा में समर्पित कर दिया। वे सुबह गुरु अमरदास जी की सेवा करते, फिर लंगर सेवा में जुट जाते। इसके बाद, यदि समय मिलता, तो वे घुंघनी बेचने निकल जाते।

समय बीतता गया और भाई जेठा जी सेवा में लगे रहे। गुरु अमरदास जी ने उनकी निष्ठा को देखकर 1553 में अपनी पुत्री बीबी भानी जी का विवाह भाई जेठा जी से कर दिया।

गुरु रामदास जी की परीक्षा भी हुई। विवाह के बाद भी, भाई जेठा जी ने अपनी भक्ति को बनाए रखा। जब भी गुरु कोई आदेश देते, वे उसका पालन करते। इस प्रकार, गुरु अमरदास जी ने उन्हें एक बावली बनाने का आदेश दिया, जिसे उन्होंने विनम्रता से पूरा किया।

गुरु अमरदास जी ने भाई जेठा जी को एक नया शहर बसाने का आदेश दिया, जिसे उन्होंने 1574 में स्थापित किया। यह गांव बाद में रामदासपुर और तालाब अमृतसर के नाम से जाना गया।

जी हां, वही अमृतसर, जहां हरमंदिर साहिब स्थित है और जहां लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन आते हैं। यहां के लंगर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है।

गुरु की नियुक्ति

गुरु अमरदास जी के सामने सिखों के चौथे गुरु के लिए चार मुख्य उम्मीदवार थे। जब गुरु ने उनकी परीक्षा ली, तो भाई जेठा जी ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो गुरु नानक जी की विचारधारा के अनुयायी थे। इस प्रकार, श्री गुरु रामदास जी को सिखों के चौथे गुरु का सम्मान मिला।

गुरु रामदास जी ने सिख धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने गृहस्थ जीवन में रहते हुए भक्ति की। उनके तीन पुत्र थे: पृथ्वी चंद, महादेव जी और अर्जन देव जी। गुरु रामदास जी ने 1581 में स्वर्गवास किया।