गुरु नानक जयंती 2025: अनमोल उपदेश जो हर पीढ़ी के लिए हैं महत्वपूर्ण
गुरु नानक जयंती 2025
गुरु नानक जयंती 2025
गुरु नानक जयंती 2025: गुरु नानक देव जी, जो सिख धर्म के संस्थापक हैं, हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस वर्ष, यह पर्व 5 नवंबर को मनाया जाएगा। इसे गुरु पर्व के नाम से भी जाना जाता है, और इस दिन 48 घंटे का अंखड पाठ किया जाता है।
गुरुद्वारों में इस अवसर पर भव्य समारोह आयोजित होते हैं, जहाँ गुरु ग्रंथ साहिब के पवित्र शब्द गूंजते हैं। गुरु नानक देव जी ने समानता, सेवा और प्रेम का संदेश दिया। उनके उपदेश मानवता, समानता और सत्य के मूल सिद्धांतों पर आधारित हैं। उन्होंने बताया कि ईश्वर एक है और वह हर जीव में विद्यमान है। प्रेम, करुणा और सेवा को उन्होंने सच्चा धर्म माना।
गुरु नानक देव जी के उपदेश
आज हम उनके कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे, जिनमें ओंकार, नाम जपना, किरत करना और वंड छकना शामिल हैं। गुरु नानक देव जी के ये सिद्धांत जीवन को सार्थक बनाने का मार्ग दिखाते हैं। उन्होंने जाति, धर्म और पंथ के भेद को मिटाने की प्रेरणा दी।
एक ओंकार- ईश्वर एक है
“एक ओंकार सतनाम” गुरु नानक देव जी का एक महत्वपूर्ण उपदेश है। उन्होंने बताया कि ईश्वर एक है और सर्वव्यापक है। ईश्वर किसी एक धर्म या जाति तक सीमित नहीं है, बल्कि वह हर जीव के भीतर है। उन्होंने कहा कि ईश्वर को मंदिर या मस्जिद में नहीं, बल्कि अपने भीतर खोजना चाहिए। जब मनुष्य यह समझता है कि सभी में एक ही ईश्वर है, तो भेदभाव और घृणा समाप्त हो जाती है। यह उपदेश मानवता को एकता, प्रेम और समानता की ओर ले जाता है।
नाम जपना
गुरु नानक देव जी ने जीवन की सबसे पवित्र साधना नाम जपने को बताया है। इसका अर्थ केवल ईश्वर का नाम लेना नहीं है, बल्कि उस परमात्मा का अनुभव करना भी है। जब मनुष्य हर कार्य में ईश्वर का स्मरण करता है, तो उसका मन शांत होता है। ईश्वर का स्मरण करने से करुणा, प्रेम और विनम्रता का विकास होता है।
वंड छकना- बांटने की भावना
गुरु नानक देव जी ने वंड छकने का संदेश दिया, जिससे निस्वार्थता और साझेदारी की भावना जागृत हो। उन्होंने बताया कि ईश्वर का आशीर्वाद उसी पर बरसता है, जो अपनी कमाई को जरूरतमंदों के साथ बांटता है। धन, भोजन या समय का कुछ हिस्सा दूसरों की सेवा में लगाने से मन हल्का होता है।
किरत करना- ईमानदारी से जीवन यापन
गुरु नानक देव जी ने कर्म को पूजा माना है। ईमानदार श्रम से जुड़ी भक्ति ही सच्ची भक्ति है। बिना मेहनत के मिली वस्तु मनुष्य के पास नहीं रहती। ईमानदारी और निष्ठा के साथ जीवन यापन करना ही किरत करना का अर्थ है।
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