गुज्जर और बकरवाल जनजातियों के साथ सेना के रिश्ते में दरार: विशेषज्ञों की चिंता
गुज्जर और बकरवाल जनजातियों के साथ सेना के रिश्ते में हाल के वर्षों में दरार आई है, जिससे सुरक्षा बलों की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इन समुदायों का विश्वास फिर से जीतना आवश्यक है, क्योंकि ये पहाड़ों की 'आंख और कान' हैं। हाल की घटनाओं ने इस रिश्ते को कमजोर किया है, जिससे जमीनी स्तर पर खुफिया जानकारी में कमी आई है। जानिए इस मुद्दे पर विशेषज्ञों की राय और भविष्य की दिशा क्या हो सकती है।
Sep 22, 2025, 14:49 IST
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सुरक्षा बलों की रणनीति में बदलाव की आवश्यकता
विशेषज्ञों का मानना है कि आतंकवादी समूहों द्वारा ऊंची चोटियों को सुरक्षित पनाहगाह के रूप में उपयोग करने के चलते, सुरक्षा बलों, विशेषकर सेना को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। गुज्जर और बकरवाल खानाबदोश जनजातियों का विश्वास फिर से जीतना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन्हें पहाड़ों की “आंख और कान” माना जाता है। अधिकारियों का कहना है कि इन समुदायों के बीच अविश्वास बढ़ने से सीमा सुरक्षा के लिए आवश्यक खुफिया जानकारी जुटाने में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
गुज्जर और बकरवाल समुदायों का ऐतिहासिक सहयोग
पुंछ-राजौरी के बीहड़ पीर पंजाल क्षेत्र में लगभग 23 लाख की आबादी वाले गुज्जर और बकरवाल समुदाय दशकों से सेना के सहयोगी रहे हैं। इनकी निष्ठा और बलिदान ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रुखसाना कौसर और राइफलमैन औरंगजेब जैसे व्यक्तित्वों की वीरता ने इस समुदाय की देशभक्ति को उजागर किया है।
विश्वास में कमी और हालिया घटनाएं
हाल के वर्षों में, कुछ घटनाओं ने इस समुदाय और सेना के बीच विश्वास को कमजोर किया है। 2018 का कठुआ बलात्कार मामला और 2020 का अमशीपोरा फर्जी मुठभेड़ मामला इस संबंध में महत्वपूर्ण हैं। हालांकि सेना ने कुछ कार्रवाई की, लेकिन समुदाय का मानना है कि ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए थीं।
टोपा पीर घटना का प्रभाव
दिसंबर 2023 में पुंछ के टोपा पीर में सैनिकों पर हमले के बाद तीन नागरिकों की मौत ने इस रिश्ते को और भी कमजोर कर दिया। अधिकारियों का कहना है कि इन घटनाओं ने गुज्जर और बकरवाल युवकों को अलग-थलग कर दिया है, जिससे जमीनी स्तर पर खुफिया जानकारी में कमी आई है।
समुदाय के अधिकारों की अनदेखी
गुज्जर नेता शाहनवाज चौधरी ने समुदाय के अधिकारों की अनदेखी पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने वन भूमि पर बकाया अधिकारों का मुद्दा उठाया है, जिसके लिए गुज्जर और बकरवाल समुदायों को अभी तक व्यक्तिगत दावे नहीं मिले हैं।
सेना और समुदाय के बीच संवाद की आवश्यकता
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डी.एस. हुड्डा ने गुज्जर और बकरवाल जनजातियों की अदम्य भावना को याद करते हुए कहा कि हमें इन समुदायों के साथ संबंधों को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि आदिवासियों को अनुपयोगी समझना गलत है।
भविष्य की दिशा
विशेषज्ञों का मानना है कि गुज्जर और बकरवाल समुदायों के साथ सेना के संबंधों को सुधारने के लिए एक समान नीति की आवश्यकता है। जावेद राही ने कहा कि विश्वास बनाए रखने के लिए एकरूपता बेहद जरूरी है।