गाजा शांति सम्मेलन में भारत की उपस्थिति पर शशि थरूर के सवाल

गाजा शांति सम्मेलन में भारत की उपस्थिति पर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह का प्रतिनिधित्व अन्य देशों के उच्चतम स्तर के नेताओं की तुलना में कमतर है, जिससे भारत की आवाज सीमित हो सकती है। थरूर ने यह भी बताया कि यह कदम भारत की रणनीतिक दूरी का संकेत हो सकता है। सम्मेलन का उद्देश्य गाजा में युद्धविराम, मानवीय सहायता, और पुनर्निर्माण पर वैश्विक सहमति बनाना है। क्या भारत ने इस महत्वपूर्ण अवसर को खो दिया है? जानें पूरी कहानी में।
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गाजा शांति सम्मेलन में भारत की भूमिका

मिस्र के शार्म एल-शेख में सोमवार से प्रारंभ हुए गाजा शांति सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह कर रहे हैं। इस पर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने चिंता व्यक्त की है, यह पूछते हुए कि क्या यह भारत की रणनीतिक दूरी का संकेत है या फिर एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक अवसर को खो दिया गया है।


सम्मेलन में शामिल वैश्विक नेता

इस सम्मेलन में विश्व के प्रमुख नेता एकत्रित हुए हैं, जिनमें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी, और संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनियो गुटेरेश शामिल हैं। अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, तुर्की, कतर, और जॉर्डन भी इस उच्च-स्तरीय शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं।


सम्मेलन का उद्देश्य

गाजा शांति सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य गाजा में युद्धविराम की रूपरेखा तैयार करना, मानवीय सहायता का समन्वय करना, और पुनर्निर्माण के लिए एक रोडमैप पर वैश्विक सहमति स्थापित करना है।


थरूर की चिंताएँ

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि जब कई देशों ने अपने उच्चतम स्तर के प्रतिनिधि भेजे हैं, तो भारत का इस सम्मेलन में निचले स्तर का प्रतिनिधित्व हमारी आवाज को सीमित कर सकता है। उन्होंने कहा कि यह किसी व्यक्ति की योग्यता का मामला नहीं है, बल्कि यह संदेश का महत्व है।


भारत के प्रतिनिधित्व पर सवाल

थरूर ने इस निर्णय पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कदम भारत की रणनीतिक दूरी को दर्शा सकता है, जबकि आधिकारिक बयानों में ऐसा कोई संकेत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि इस स्तर की उपस्थिति से भारत को पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रभावी ढंग से अपनी बात रखने का अवसर कम मिल सकता है।


कूटनीतिक बहस

इस निर्णय ने कूटनीतिक हलकों में बहस को जन्म दिया है कि क्या भारत इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में रणनीतिक दूरी बनाए हुए है या यह केवल एक प्रोटोकॉल से संबंधित व्यावहारिक निर्णय है।