क्या 2026 में भारत बनेगा मैन्युफैक्चरिंग का अगला केंद्र?
भारत की मैन्युफैक्चरिंग में नया मोड़
क्या 2026 में भारत बनेगा अगला 'चीन'?
जैसे ही 2025 का अंत नजदीक आ रहा है, भारत की मैन्युफैक्चरिंग की स्थिति में उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिल रहा है। जो बातें पहले केवल कागजों पर थीं, वे अब वास्तविकता में बदल रही हैं। उदाहरण के लिए, आईफोन का भारत में निर्माण, फोर्ड जैसी कंपनियों का वापस आना, और एलजी जैसी कंपनियों का भारत को अपना नया केंद्र बनाने पर विचार करना, ये सब संकेत हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव हो रहा है। 2026 में, क्या भारत वास्तव में चीन जैसी मैन्युफैक्चरिंग महाशक्ति बनने की दिशा में बढ़ेगा?
भारत की दिशा का निर्धारण
भारत के मैन्युफैक्चरिंग बूम को समझने के लिए हमें चीन के मॉडल की नकल करने के बजाय अपनी दिशा तय करनी होगी। चीन का विकास सस्ते श्रम और सरकारी सहायता पर निर्भर था, जबकि भारत का रास्ता भिन्न है। इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में सबसे बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। 2025 के अंत तक, भारत एप्पल के लिए केवल एक असेंबली लाइन नहीं रह गया है, बल्कि एक प्रमुख उत्पादन केंद्र बन चुका है। यदि हम 2026 में मोबाइल के छोटे पुर्जों का निर्माण करने में सफल होते हैं, तो यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण होगा, जैसा कि चीन के लिए उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स बूम का आरंभिक दौर था।
चिप और बैटरी का महत्व
सेमीकंडक्टर का निर्माण भारत के लिए एक साहसिक कदम है। चिप्स की कमी और सप्लाई चेन में बाधाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि स्वदेशी चिप्स का होना कितना आवश्यक है। 2026 में सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या हमने एक संपूर्ण इकोसिस्टम विकसित किया है। यदि चिप डिजाइन करने वाले इंजीनियर, कच्चा माल देने वाली कंपनियां और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियां एक साथ मिलकर काम करें, तो यह भारत की सफलता का संकेत होगा।
बैटरी निर्माण और दुर्लभ खनिजों की प्रोसेसिंग भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। इलेक्ट्रिक वाहनों और सौर पैनलों के लिए ऊर्जा भंडारण की आवश्यकता बढ़ रही है। यदि भारत इन क्षेत्रों में मजबूत स्थिति बना लेता है, तो यह चीन पर निर्भरता कम कर सकता है और एक नई औद्योगिक क्रांति की नींव रख सकता है।
भारत के लिए सुनहरा अवसर
चीन की सफलता में लाखों किसानों का कारखानों में काम करना शामिल था, जबकि भारत की स्थिति भिन्न है। हमारी युवा जनसंख्या है, लेकिन कौशल की कमी एक चुनौती है। आज की फैक्ट्रियों में रोबोट और ऑटोमेशन का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन मुश्किल हो रहा है।
इसलिए, 2026 यह दिखाएगा कि क्या नई फैक्ट्रियां हमारे युवाओं को रोजगार दे पाती हैं। नई श्रम नीतियों और अप्रेंटिसशिप योजनाओं की असली परीक्षा अब होगी। यदि कंपनियां स्थायी नौकरियां देने और व्यावसायिक प्रशिक्षण को उद्योग की जरूरतों से जोड़ने में सफल होती हैं, तो यह आम भारतीय के लिए एक बड़ी जीत होगी।
वैश्विक स्तर पर भी भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है। दुनिया चीन का विकल्प खोज रही है और अमेरिका जैसे देशों के साथ व्यापार समझौते लगभग तय हैं। ये समझौते भारतीय उत्पादों के लिए नए बाजार खोलेंगे। 2026 शायद वह वर्ष न हो जब हम रातों-रात 'अगला चीन' बन जाएं, लेकिन यह निश्चित रूप से वह वर्ष हो सकता है जब भारत आत्मनिर्भर मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस के रूप में अपनी जगह मजबूत कर ले।
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