कोलकाता में गीता पाठ कार्यक्रम ने धार्मिक एकता का संदेश दिया
कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में आयोजित 'पंच लाखो कोंठे गीता पाठ' कार्यक्रम ने लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति के साथ एक अद्वितीय आध्यात्मिक माहौल का निर्माण किया। इस आयोजन ने राजनीतिक तनाव के बीच धार्मिक एकता का संदेश दिया। राज्यपाल और विभिन्न राजनीतिक हस्तियों की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। जानें इस आयोजन के पीछे की कहानी और इसके सांस्कृतिक महत्व के बारे में।
| Dec 8, 2025, 16:21 IST
कोलकाता में गीता पाठ का आयोजन
रविवार को कोलकाता के प्रसिद्ध ब्रिगेड परेड ग्राउंड में लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने एक अद्वितीय आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण किया। 'पंच लाखो कोंठे गीता पाठ' कार्यक्रम में साधु-संतों, महात्माओं और भक्तों ने एक साथ भगवद्गीता के श्लोकों का सामूहिक पाठ किया। यह आयोजन 'सनातन संस्कृति संसद' द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें राज्य और देशभर के विभिन्न मठों के संत शामिल हुए। कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल, भाजपा के वरिष्ठ नेता, केंद्रीय मंत्री, विधायक और अन्य राजनीतिक हस्तियाँ भी उपस्थित थीं, हालांकि मंच पर आध्यात्मिकता पर जोर दिया गया।
राजनीतिक पृष्ठभूमि
यह आयोजन उस समय हुआ जब तृणमूल कांग्रेस के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में 'बाबरी मस्जिद' की तर्ज पर एक मस्जिद की नींव रखी थी। इसे राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित और साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने वाला कदम माना गया। इस संदर्भ में, कोलकाता में लाखों लोगों की भीड़ और संतों की एकजुटता ने यह संदेश दिया कि धर्म को राजनीति के लिए नहीं, बल्कि समाज की शांति और सांस्कृतिक गौरव के लिए खड़ा होना चाहिए।
गीता पाठ का महत्व
कार्यक्रम में गीता के पहले, नवम और अठारहवें अध्याय का सामूहिक पाठ किया गया। भगवा वस्त्र पहने साधु-संतों का समुद्र, लहराते तिरंगे और 'हरे कृष्ण' भजन की गूंज ने यह स्पष्ट किया कि बंगाल की सांस्कृतिक चेतना राजनीति से कहीं अधिक व्यापक है। राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने कहा कि बंगाल 'धार्मिक अहंकार को समाप्त करने और बदलाव के लिए तैयार है।' उन्होंने गीता के श्लोक का उद्धरण देते हुए धर्म की पुनर्स्थापना के महत्व पर जोर दिया।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
भाजपा नेताओं ने इस आयोजन को सांस्कृतिक पुनर्जागरण के रूप में प्रस्तुत किया और तृणमूल सरकार पर धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। वहीं, तृणमूल नेता कुनाल घोष ने इसे गीता का 'राजनीतिक दुरुपयोग' बताया।
धार्मिक और राजनीतिक दृष्टिकोण
हुमायूं कबीर द्वारा 'बाबरी शैली' की मस्जिद का शिलान्यास एक राजनीतिक चाल थी, जिसका उद्देश्य धार्मिक भावनाओं को भड़काना था। ऐसे कदम समाज में विभाजन की रेखाएँ गहरी करते हैं। लेकिन संतों और श्रद्धालुओं ने गीता पाठ के माध्यम से एक गहरा और अर्थपूर्ण उत्तर दिया। यह प्रतिक्रिया टकराव की नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की स्वाभाविक समावेशिता की थी।
समाज का नैतिक आधार
जहाँ हुमायूं कबीर का कदम धार्मिक प्रतीकों का राजनीतिक प्रोपगेंडा बनाने का प्रयास था, वहीं गीता पाठ का यह विशाल आयोजन इस बात की पुष्टि करता है कि धर्म राजनीति का उपकरण नहीं, बल्कि समाज का नैतिक आधार है। जब लाखों कंठों ने गीता के श्लोक पढ़े, तो यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि बंगाल के आध्यात्मिक चरित्र की पुनर्स्मृति थी।
सांस्कृतिक निरंतरता
संतों का यह शांत लेकिन प्रभावी उत्तर यह दर्शाता है कि सनातन परंपरा की शक्ति विरोध या हिंसा में नहीं, बल्कि धर्म की मर्यादा और सांस्कृतिक निरंतरता में निहित है। यही भारतीय संस्कृति की पहचान है, जहाँ उत्तर तलवार से नहीं, बल्कि श्लोक से दिया जाता है।
