कैसे मंदोदरी ने रावण की मृत्यु का रहस्य उजागर किया

रामायण में रावण के वध की कहानी में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आता है जब उसकी पत्नी मंदोदरी एक रहस्य उजागर करती है। यह रहस्य रावण की नाभि में छिपे अमृत कुंड से जुड़ा है। जानें कैसे हनुमान जी ने इस रहस्य को जानकर श्री राम को रावण को पराजित करने में मदद की। यह कथा न केवल रावण की हार का कारण बनी, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे एक महिला की बुद्धिमत्ता ने युद्ध का परिणाम बदल दिया।
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कैसे मंदोदरी ने रावण की मृत्यु का रहस्य उजागर किया

रावण वध की कहानी

नई दिल्ली: रामायण में रावण के वध की कथा सभी को ज्ञात है। यह बात सभी जानते हैं कि रावण की मृत्यु एक कठिन कार्य था। जब प्रभु श्री राम ने रावण के सिर काटे, तो वह हर बार एक नए सिर के साथ जीवित हो जाता था। इस दौरान रावण के भाई विभीषण ने श्री राम को बताया कि रावण की नाभि में अमृत का कुंड है। जब तक यह अमृत सुरक्षित है, तब तक रावण को कोई हानि नहीं पहुंचा सकता।


रावण की नाभि पर हमला

विभीषण के इस रहस्य को जानने के बाद, श्री राम ने रावण की नाभि पर तीर चलाया, जिससे उसकी मृत्यु हुई। यह रहस्य उजागर होने के बाद रावण की हार हुई और उसकी दुष्टता का अंत हुआ। लेकिन यह कथा यहीं खत्म नहीं होती। इसका संबंध रावण की पत्नी मंदोदरी से भी है, जिसने यह रहस्य बताया था, जो अंततः रावण की मृत्यु का कारण बना।


ब्रह्मा जी का वरदान

एक बार रावण, कुंभकर्ण और विभीषण ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने वरदान मांगने के लिए कहा। रावण ने अमरत्व का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा कि किसी को भी अमरता नहीं दी जा सकती। इसके बाद रावण ने विशेष वरदान मांगा।


मंदोदरी का रहस्य

रावण के हठ के कारण ब्रह्मा जी ने उसे एक विशेष तीर दिया, जिससे वह केवल उसी तीर से मारा जा सकता था। रावण ने उस तीर को अपने महल में सुरक्षित रखा। यह रहस्य केवल उसकी पत्नी मंदोदरी को पता था। जब युद्ध में श्री राम रावण को पराजित नहीं कर पाए, तब विभीषण ने उन्हें बताया कि रावण की नाभि में अमृत है।


हनुमान जी का योगदान

हनुमान जी ने ज्योतिष का रूप धारण कर लंका में जाकर लोगों का भविष्य बताना शुरू किया। मंदोदरी ने भी अपना भविष्य जानने के लिए उनसे संपर्क किया। हनुमान जी ने कहा कि रावण को उस तीर से खतरा है। मंदोदरी ने बताया कि वह तीर सिंहासन के खंभे के पीछे है। यह जानकर हनुमान जी ने तीर लाकर श्री राम को सौंप दिया। अंततः उसी तीर से भगवान ने रावण का वध किया।