केरल हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: हेल्थ इंश्योरेंस का दावा ठुकराना जीवन के अधिकार का उल्लंघन

हेल्थ इंश्योरेंस का दावा और जीवन का अधिकार

हेल्थ इंश्योरेंस
केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि यदि किसी मरीज का हेल्थ इंश्योरेंस दावा अस्वीकृत किया जाता है, तो यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा। न्यायमूर्ति पी.एम. मनोज ने कहा कि जो भी मरीज को इस तरह से वंचित करता है, वह उसके जीवन के अधिकार का उल्लंघन कर रहा है। यदि कोई व्यक्ति बीमा के लिए योग्य है और डॉक्टर की सलाह पर इलाज कराता है, तो बीमा कंपनी को उस दावे को अस्वीकार नहीं करना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई बीमा कंपनी ऐसा करती है, तो यह नागरिक के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। बीमा कंपनियों को इलाज के लिए किए गए खर्च के दावों को अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है। ऐसा करने पर वे मरीज को इलाज से वंचित कर रही हैं।
दावे के खारिज होने का मामला
एक व्यक्ति ने अपनी मेडिकल बीमा के दावों को खारिज करने के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने 2008 से नियमित रूप से हेल्थ इंश्योरेंस का प्रीमियम भरा था। जब बीमा कंपनी ने उसके पहले दावे को खारिज किया, जिसमें उसने 60,093 रुपये खर्च किए थे, तो उसे केवल 5,600 रुपये दिए गए। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने इलाज के लिए 1,80,000 रुपये का दावा किया था, जिसे पहले से मौजूद बीमारी बताकर खारिज कर दिया गया।
पिछले फैसलों का संदर्भ
केरल उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण मामलों का उल्लेख किया, जैसे पश्चिम बंगा खेत मजदूर समिति बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और कंज्यूमर एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर बनाम भारत संघ। कोर्ट ने कहा कि इलाज का अधिकार जीवन के अधिकार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यदि किसी बीमा कंपनी द्वारा इसे नकारा जाता है, तो यह अनुच्छेद 21 का स्पष्ट उल्लंघन है।