केरल में अबॉर्शन के मामलों में वृद्धि: महिलाओं के अधिकारों की जागरूकता

महिलाओं के अबॉर्शन में चुनौतियाँ
महिलाओं को अबॉर्शन कराने में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जब कोई महिला अस्पताल में अबॉर्शन के लिए जाती है, तो उसे कई सवालों का सामना करना पड़ता है। कई बार डॉक्टर बिना किसी स्पष्ट कारण के भी अबॉर्शन करने से मना कर देते हैं। हमारे समाज में अबॉर्शन को लेकर यह धारणा बनी हुई है कि महिलाओं को अपने शरीर पर कोई अधिकार नहीं है।
केरल में जागरूकता का बढ़ता स्तर
केरल में महिलाएं अपनी प्रजनन स्वास्थ्य के प्रति काफी जागरूक हो गई हैं। हेल्थ मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम (HMIS) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले नौ वर्षों में अबॉर्शन के मामलों में 76% से अधिक की वृद्धि हुई है। एमटीपी (संशोधन) अधिनियम, 2021 के तहत अबॉर्शन की वैध सीमा 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दी गई है।
अबॉर्शन के आंकड़ों में वृद्धि
एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014-15 में कुल 17,025 अबॉर्शन हुए थे, जबकि 2023-24 में यह संख्या लगभग 30,000 तक पहुंच गई है। इनमें से 21,282 मामले निजी अस्पतालों में और 8,755 सरकारी अस्पतालों में दर्ज किए गए हैं। 2015-16 से 2024-25 के बीच केरल में कुल 1,97,782 अबॉर्शन के मामले सामने आए हैं।
अबॉर्शन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण
अधिकतर लोग अबॉर्शन को नकारात्मक रूप से देखते हैं, लेकिन कई अबॉर्शन महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए किए जाते हैं। कुछ मामलों में महिलाओं को मजबूर करके भी अबॉर्शन कराया जाता है। इसलिए डॉक्टरों को महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना चाहिए।
निजी अस्पतालों पर निर्भरता
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की है कि लोग अबॉर्शन के लिए निजी अस्पतालों का चयन कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण गोपनीयता है। सरकारी अस्पतालों को भी बेहतर बुनियादी ढांचे में सुधार करना चाहिए।
महिलाओं की अधिकारों के प्रति सजगता
विशेषज्ञों का कहना है कि अबॉर्शन कराने वाली महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति सजग हो रही हैं। आज की महिलाएं अपने जीवन के साथ जोखिम नहीं उठाना चाहती हैं और बेहतर देखभाल के लिए निजी अस्पतालों पर भरोसा कर रही हैं। सरकारी अस्पतालों में विवाह प्रमाण पत्र जैसी मांगें महिलाओं को हतोत्साहित करती हैं।