केंद्रीय संचार ब्यूरो के कार्यालयों का बंद होना: आदिवासी क्षेत्रों पर प्रभाव

केंद्रीय संचार ब्यूरो के कार्यालयों के बंद होने से मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में जागरूकता की कमी और योजनाओं के लाभ से वंचित होने की चिंता बढ़ गई है। पिछले 17 दिनों से कई कार्यालयों में ताले लगे हुए हैं, जिससे आम जनता को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। यदि स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो आंदोलन की संभावना भी जताई जा रही है। जानें इस मुद्दे के पीछे की पूरी कहानी और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
 | 
केंद्रीय संचार ब्यूरो के कार्यालयों का बंद होना: आदिवासी क्षेत्रों पर प्रभाव

केंद्रीय संचार ब्यूरो के कार्यालयों का बंद होना

केंद्रीय संचार ब्यूरो का कार्यालय बंद

भोपाल
 भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत केंद्रीय संचार ब्यूरो के क्षेत्रीय कार्यालयों की स्थापना 1955 में कांग्रेस सरकार के दौरान की गई थी। इसका उद्देश्य जनहित में विकास को बढ़ावा देना था।

मध्यप्रदेश में बालाघाट, छिंदवाड़ा, मंदसौर, झाबुआ, छतरपुर, रीवा, इंदौर, ग्वालियर, शहडोल, मंडला, सागर, जबलपुर जैसे स्थानों पर कार्यालय संचालित थे। ये कार्यालय 55 जिलों में भारत और राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का कार्य कर रहे थे। यह विभाग सरकार और आम जनता के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता था।

हालांकि, केंद्र सरकार की नीतियों के कारण आदिवासी क्षेत्रों में स्थित कार्यालयों जैसे मंडला, बालाघाट, छिंदवाड़ा, छतरपुर, शहडोल, मंदसौर और सागर में पिछले 17 दिनों से ताले लगे हुए हैं। यह स्थिति आम जनता के लिए अत्यंत चिंताजनक है। इन कार्यालयों के बंद होने से आदिवासी क्षेत्रों में जागरूकता की कमी और भी बढ़ जाएगी। इसलिए, इन कार्यालयों को बंद करने के बजाय उन्हें यथावत बनाए रखना आवश्यक है ताकि सरकार की योजनाएं आम जनता तक पहुंच सकें। यदि केंद्र सरकार इस स्थिति में सुधार नहीं करती है, तो आंदोलन की आवश्यकता पड़ सकती है, जिसका असर 2029 के चुनावों पर भी पड़ेगा।

गुलाबरा स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के अतिरिक्त बेतुल और हरदा जिले भी इसके अंतर्गत आते हैं। छिंदवाड़ा आदिवासी बहुल क्षेत्र है, और विभाग के बंद होने से आम जनता को योजनाओं के लाभ से वंचित रहना पड़ेगा।