केंद्र सरकार ने सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण की योजना को रोका

सरकारी बैंकों के निजीकरण पर रोक
केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की योजना को फिलहाल स्थगित कर दिया है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, अब इन बैंकों को निजी हाथों में सौंपने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ये बैंकों ने अच्छा मुनाफा कमाया है और लोगों का इन पर विश्वास भी बढ़ा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 के बजट में दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी, जो नई सार्वजनिक क्षेत्र की नीति का हिस्सा था। इसका उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और विकास को गति देना था। लेकिन अब सरकार ने इस प्रक्रिया को रोकने पर विचार किया है।
बैंकों का प्रदर्शन और निजीकरण की प्रक्रिया
पिछले कुछ वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा है। कुछ सरकारी बैंक तो निजी बैंकों से भी अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। 2022-23 में इन बैंकों का कुल शुद्ध मुनाफा 1.05 लाख करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 1.41 लाख करोड़ रुपये हो गया। मई 2024 में आम चुनावों के बाद, कई लोगों को उम्मीद थी कि सरकार निजीकरण की प्रक्रिया शुरू करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके लिए बैंकिंग कंपनियों के अधिग्रहण और हस्तांतरण अधिनियम 1970 और 1980, और बैंकिंग रेगुलेशन अधिनियम 1949 में संशोधन की आवश्यकता थी, जो अभी तक नहीं हुआ है।
बैंक शेयरों में तेजी
इस निर्णय के बाद बैंक निफ्टी और सरकारी बैंकों के शेयरों में तेजी आई है। निफ्टी पीएसयू बैंक ने पिछले एक महीने में 3.98 प्रतिशत का सकारात्मक रिटर्न दिया है। पिछले तीन महीनों में इसने 5.82 प्रतिशत का रिटर्न दिया है। पिछले तीन वर्षों में इस इंडेक्स ने 131.74 प्रतिशत और पिछले पांच वर्षों में 418 प्रतिशत का रिटर्न दिया है। विभिन्न पीएसयू बैंकों में, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने पिछले दो हफ्तों में 2.08 प्रतिशत और एक महीने में 4.60 प्रतिशत का रिटर्न दिया है।
बैंक यूनियनों का विरोध
निजीकरण के इस प्रस्ताव का बैंक यूनियनों ने शुरू से ही विरोध किया है। उनका मानना है कि सरकारी बैंक राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये बैंक लोगों की बचत को कृषि जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में निवेश करते हैं। 2021 में, आठ लाख बैंक कर्मचारियों ने निजीकरण के खिलाफ हड़ताल की थी। यूनियनों का यह लगातार विरोध सरकार के पीछे हटने का एक प्रमुख कारण बना।
आईडीबीआई बैंक का निजीकरण
आईडीबीआई बैंक के निजीकरण की चर्चा भी उठी है। सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि यह बैंक मुनाफे में है, इसलिए इसके शेयर बेचने की आवश्यकता नहीं है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हाल ही में आईडीबीआई बैंक के कर्मचारियों से मुलाकात की। डिपाम सचिव अरुणिश चावला ने कहा था कि अगले तीन महीनों में डिवेस्टमेंट की प्रक्रिया पूरी हो सकती है। सरकार और एलआईसी मिलकर बैंक में अपनी 61 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच रहे हैं।