कुलदीप सेंगर को दिल्ली हाई कोर्ट से मिली राहत: जानिए पूरा मामला
कुलदीप सेंगर मामले में हाई कोर्ट का निर्णय
कुलदीप सिंह सेंगर मामला.
उन्नाव रेप केस में पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाई कोर्ट से राहत मिली है। हाल ही में, कोर्ट ने उन्हें जमानत दी और निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को निलंबित कर दिया। इस फैसले से पीड़िता को गहरा आघात पहुंचा है, जिसके चलते उसने दिल्ली में विरोध प्रदर्शन भी किया। इस पर पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज मार्कंडेय काटजू ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।
मार्कंडेय काटजू ने सोशल मीडिया पर लिखा कि हाई कोर्ट ने 23 दिसंबर 2025 को दिए गए अपने अंतरिम आदेश में सेंगर की उम्रकैद की सजा को निलंबित कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह देखकर आश्चर्य हुआ कि कई वरिष्ठ वकील, रिटायर्ड जज, और एक्टिविस्ट इस आदेश पर तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं, जैसे कि यह भारत में न्याय की समाप्ति का संकेत हो।
आदेश की आलोचना पर सवाल
काटजू ने यह भी कहा कि उन्हें संदेह है कि आलोचकों ने आदेश को पूरी तरह से पढ़ा है या नहीं। उन्होंने जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच के आदेश का गहराई से अध्ययन किया है और इसे उचित पाया है। 48 पैराग्राफ के इस फैसले में सभी महत्वपूर्ण तथ्यों और कानूनी प्रावधानों पर विचार किया गया है।
काटजू के अनुसार, ध्यान देने योग्य बिंदु:
- सेंगर ने पहले ही साढ़े सात साल जेल में बिताए हैं।
- यह एक अंतरिम आदेश है, और अपील का अंतिम निर्णय अभी लंबित है।
- ट्रायल कोर्ट ने माना था कि एक विधायक एक सार्वजनिक सेवक होता है, जिससे यह अपराध POCSO एक्ट के तहत गंभीर यौन अपराध बन जाता है।
- हालांकि, बेंच ने सही कहा कि POCSO एक्ट में 'पब्लिक सर्वेंट' की परिभाषा नहीं दी गई है।
‘पब्लिक सर्वेंट’ की परिभाषा पर चर्चा
काटजू ने कहा कि भारतीय दंड संहिता में 'पब्लिक सर्वेंट' की परिभाषा दी गई है, जिसमें विधायक शामिल नहीं हैं। उन्होंने बताया कि ट्रायल कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की परिभाषा को POCSO एक्ट पर लागू किया, जो कि गलत था। बेंच ने पीड़िता की सुरक्षा के लिए भी निर्देश दिए हैं।
पैरा 45 में बेंच ने अपीलकर्ता की सजा को निलंबित करने के लिए कुछ शर्तें रखी हैं, जैसे कि जमानत राशि और पीड़िता के निवास के पास न आने की शर्तें।
काटजू का निष्कर्ष
काटजू ने कहा कि उन्हें इस आदेश में कोई कमी नहीं दिखती। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या न्यायिक फैसले भावनाओं पर आधारित होने चाहिए या कानून के अनुसार। उनके अनुसार, इस विशेष आदेश में कोई गलती नहीं है।
