काशी में अंतिम संस्कार की अनोखी परंपरा: चिता की राख पर 94 अंक का रहस्य
Hindu Funeral Traditions
अंतिम संस्कारImage Credit source: Unplash
अंतिम संस्कार की परंपरा: काशी, जिसे भगवान शिव की नगरी माना जाता है, मोक्ष की भूमि के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहां अंतिम संस्कार कराने से आत्मा को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि लोग मृत्यु के बाद काशी में अंतिम संस्कार करना पसंद करते हैं। मणिकर्णिका घाट पर 24 घंटे चिताएं जलती रहती हैं।
मणिकर्णिका घाट को महाशमशान के नाम से भी जाना जाता है। यहां अंतिम संस्कार के बाद एक अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है। चिता जलने के बाद उसकी राख पर 94 अंक लिखा जाता है, जिसका एक गहरा रहस्य है। आइए जानते हैं इस अंक के पीछे की कहानी।
चिता की राख पर 94 अंक लिखने की परंपरा
अंतिम संस्कार के बाद चिता की राख ठंडी होने पर उसे गंगा में विसर्जित किया जाता है। लेकिन मणिकर्णिका घाट पर, राख को गंगा में डालने से पहले उस पर उंगली से 94 अंक लिखा जाता है। यह परंपरा पहले काशी के पुजारियों और स्थानीय निवासियों द्वारा निभाई जाती थी, लेकिन अब बाहर से आए लोग भी इसे अपनाने लगे हैं।
गीता में कर्मों का महत्व
जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है, और इसके बाद आत्मा के कर्मों के आधार पर उसकी यात्रा तय होती है। गीता में मनुष्य के 100 कर्मों का उल्लेख है, जिनमें से 94 कर्मों पर मनुष्य का नियंत्रण होता है। ये कर्म नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक होते हैं।
संख्यात्मक महत्व
अन्य 6 कर्म जैसे जीवन, मृत्यु, यश, अपयश, लाभ और हानि भगवान के हाथ में होते हैं। अंतिम संस्कार के बाद, मनुष्य के 94 कर्म जलकर राख हो जाते हैं, और इसके बाद आत्मा की मोक्ष यात्रा आरंभ होती है। चिता की राख पर 94 अंक लिखना एक मुक्ति मंत्र के समान माना जाता है, जो यह दर्शाता है कि व्यक्ति अपने 94 कर्मों से मुक्त हो चुका है और मोक्ष की इच्छा रखता है।
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