काशी के कोतवाल: काल भैरव की महिमा और मान्यता

काशी में काल भैरव का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, काशी नगरी में हर गतिविधि का विवरण बाबा काल भैरव के पास दर्ज होता है। भगवान शिव के उग्र रूप काल भैरव को काशी का रक्षक माना जाता है।
‘काशी के कोतवाल’ का नामकरण
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। इस विवाद के चलते काल भैरव ने ब्रह्मा का एक सिर काट दिया, जिससे उन पर ब्रह्महत्या का दोष लग गया। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए वे काशी आए। काशी की गंगा में स्नान करने के बाद ब्रह्मा का सिर उनके हाथ से अलग हो गया, और यह स्थान ‘कपाल मोचन तीर्थ’ कहलाया।
भगवान विश्वनाथ ने काल भैरव को काशी का रक्षक नियुक्त किया। धार्मिक मान्यता है कि उनकी अनुमति के बिना कोई भी काशी में प्रवेश या निवास नहीं कर सकता। वे पापियों को दंडित करते हैं और भक्तों की रक्षा करते हैं। इसलिए काशी की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक काल भैरव के दर्शन न कर लिए जाएँ।
ज्योतिषाचार्य की राय
काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र पाण्डेय के अनुसार, काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए पहले काल भैरव का दर्शन करना आवश्यक है। श्रद्धा और भक्ति से पूजा करने पर कोर्ट-कचहरी के मामले, रोग-व्याधि और अन्य परेशानियाँ दूर होती हैं।
विशेष अवसर और प्रिय वस्तुएँ
भैरव अष्टमी और महाशिवरात्रि पर यहाँ भारी भीड़ होती है, साथ ही रविवार और मंगलवार को भी भक्त बड़ी संख्या में आते हैं। काल भैरव को काला वस्त्र, सरसों का तेल, उड़द के वड़े और नीली माला अत्यंत प्रिय हैं।
मंदिर परिसर में कई श्वान (कुत्ते) रहते हैं, जिन्हें काल भैरव की सवारी माना जाता है। दर्शन के बाद भक्त उन्हें बर्फी, दूध, रबड़ी और बिस्किट खिलाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे बाबा प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।
विशेषताएँ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और कई फिल्मी हस्तियाँ भी बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पहले काल भैरव के दरबार में मत्था टेकते हैं।