कार्तिक मास में तुलसी पूजा: लाभ और विधि

कार्तिक मास में तुलसी पूजा का विशेष महत्व है। यह महीना भगवान विष्णु को समर्पित है और तुलसी माता की पूजा से अनेक लाभ होते हैं। इस लेख में जानें कि कैसे करें तुलसी की पूजा, इसके लाभ और विधि। जानें कि किस प्रकार से इस पूजा से घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मकता आती है।
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कार्तिक मास में तुलसी पूजा: लाभ और विधि

तुलसी पूजा का महत्व

कार्तिक मास में तुलसी पूजा: लाभ और विधि

तुलसी पूजा

कार्तिक मास में तुलसी पूजा: हिंदू कैलेंडर का नौवां महीना कार्तिक 8 अक्टूबर से आरंभ हो रहा है। यह महीना भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। इस महीने में भगवान विष्णु चार मास की निद्रा से जागते हैं। तुलसी माता की पूजा इस समय विशेष रूप से लाभकारी मानी जाती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कार्तिक मास में तुलसी पूजा के क्या लाभ हैं और इसे कैसे किया जाता है।

तुलसी पूजा के लाभ

धार्मिक दृष्टिकोण से कार्तिक महीना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें कई व्रत और त्योहार आते हैं। इस दौरान स्नान और दान करना भी लाभकारी होता है। यह भगवान विष्णु का महीना है, जिसमें उनकी प्रिय तुलसी की पूजा का विधान है। तुलसी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि आती है और भगवान विष्णु तथा मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

इसके अलावा, कार्तिक मास में तुलसी की पूजा से कुंडली के दोषों का निवारण होता है और वातावरण शुद्ध होता है, जिससे नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। इस महीने में तुलसी की पूजा से रोगों से मुक्ति और जीवन में सकारात्मकता आती है।

तुलसी पूजा की विधि

ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें।

फिर तांबे या पीतल के लोटे से तुलसी पर जल चढ़ाएं।

तुलसी पर कुमकुम और रोली का तिलक करें और अक्षत चढ़ाएं।

तुलसी माता को उनके पसंदीदा फूल अर्पित करें।

तुलसी को मिठाई या सात्विक भोग लगाएं।

तुलसी के पौधे की चार या सात बार परिक्रमा करें।

अंत में तुलसी के मंत्रों का जाप करें और तुलसी माता की आरती करें।

दीप जलाने का समय

कार्तिक मास में तुलसी पर दीपक रोज शाम को जलाना चाहिए, विशेषकर सूर्यास्त के बाद। यह दीपक घी या तिल के तेल से जलाना शुभ माना जाता है। इस माह में सुबह और शाम तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है।

परिक्रमा की संख्या

कार्तिक मास में तुलसी की 7, 11, 21, 51, या 108 बार परिक्रमा करनी चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि इससे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं और श्रीहरि की कृपा बनी रहती है।