कार्तिक पूर्णिमा: देव दीपावली का उत्सव और उसकी महत्ता

कार्तिक पूर्णिमा, जिसे देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण पर्व है जो विशेष रूप से बनारस में मनाया जाता है। इस दिन देवता धरती पर आते हैं और लोग मिट्टी के दीयों से उनका स्वागत करते हैं। यह पर्व कृषि, आस्था और परंपरा का प्रतीक है। इस लेख में हम कार्तिक पूर्णिमा के महत्व, त्योहारों की भरमार, आकाशदीप की परंपरा और गंगा स्नान की धार्मिकता के बारे में जानेंगे। जानें कैसे यह उत्सव आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।
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कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

आज कार्तिक पूर्णिमा है, जिसे देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन देवता धरती पर आते हैं और वातावरण में एक विशेष आनंद का अनुभव होता है। हम मिट्टी के दीयों से उनका स्वागत करते हैं। बनारस में असली दीपावली का पर्व आज मनाया जाता है, जब पूरा शहर और घाट दीयों से जगमगाते हैं। ये दीये केवल प्रकाश का स्रोत नहीं होते, बल्कि लक्ष्मी की याद भी दिलाते हैं। इनकी रोशनी में सरसों की सुनहरी चमक होती है, और इनसे कोल्हू की आवाज सुनाई देती है। यह दीये हमारी मिट्टी की सुगंध से भरे होते हैं।


कुम्हार की चाक पर दीये बनते हैं, जो मानव श्रम की सुंदरता को दर्शाते हैं। परंपरा और प्रकृति का यह संगम देवताओं का स्वागत करता है। घाटों पर बांस गाड़कर दीये लटकाए जाते हैं, जिन्हें आकाशदीप कहा जाता है। दीया सूर्य, चंद्रमा और अग्नि का प्रतीक है, और इसकी मिट्टी पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। जब रात में यह जलता है, तो इसे अखंड दीप कहा जाता है।


कार्तिक में त्योहारों की भरमार

कार्तिक का महीना कृषि का समय है, जब किसान नए धान की खुशबू से महकते हैं। विद्यानिवास जी के अनुसार, सुबह-सुबह श्यामा चिरैया चहकती है, जो शुभ संकेत मानी जाती है। इसी दिन गुरु नानक देव जी का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है। चार दिन पहले एकादशी पर भगवान विष्णु चार महीने की नींद से जागते हैं, और उनका जागना पूरे जगत के लिए एक नई शुरुआत होती है। इस महीने स्वाती नक्षत्र भी आता है, जो चातक के लिए अमृत बरसाता है। कार्तिक का महीना समृद्धि और उत्सव का प्रतीक है।


इस महीने में स्नान, तीर्थ, दान और तप करने वालों को विष्णु अक्षय फल प्रदान करते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक में पूजा पाठ करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह हिन्दू पंचांग का आठवां महीना है, जो शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। कार्तिक शुक्ल एकादशी, जिसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है, वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण एकादशी होती है.


आकाशदीप और बनारस की परंपरा

संतों का चातुर्मास इसी एकादशी के दिन समाप्त होता है, और तुलसी से विष्णु का विवाह भी इसी दिन होता है। पूरे महीने तुलसी की पूजा और आकाश में दीया जलाने की परंपरा है। बनारस के घाटों पर जलते दीये बांस की टोकरी में लटकते हैं। यह आकाशदीप का दृश्य बहुत मोहक होता है। महाकवि जयशंकर प्रसाद ने इसी आकाशदीप पर एक कहानी लिखी है।


बनारसी मित्र सुधेन्दु पटेल ने भी आकाश में लटकते इन दीपों पर एक कविता लिखी है, जिसमें उन्होंने दीपों की महत्ता को दर्शाया है।


पंचगंगा घाट का ऐतिहासिक महत्व

पंचगंगा घाट पर देव दीपावली का जीवित इतिहास मिलता है। यह घाट काशी के पांच पौराणिक घाटों में से एक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, यहां गंगा के साथ यमुना, सरस्वती, धूतपापा और किरणा नदियां मिलती हैं। इसी कारण इसे पंचगंगा कहा जाता है। कबीर के गुरु रामानंद का श्रीमठ भी यहीं स्थित है।


बचपन से मैंने देखा है कि काशी का गंगा तट दीपों से सजता है। यहां आम लोग बिना किसी आयोजन के दीये जलाते हैं। यह सामूहिक उत्सव का प्रतीक है। महादेवी जी ने शायद इन्हीं दीपों को प्रतिष्ठित करते हुए लिखा था कि दीप ज्ञान का प्रतीक है।


कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव

कार्तिक पूर्णिमा हमारे कृषि समाज और ऋतु चक्र का मिलन है। किसान चार महीने की मेहनत के बाद अपनी फसल घर लाता है। देवता चार महीने की नींद से जागते हैं, और साधु संत समाज को दिशा देने के लिए सक्रिय होते हैं। यह उत्सव मिलकर मनाने का है।


कार्तिक पूर्णिमा सगुणोपासना और निर्गुणोपासना का पर्व है, जो गुरु नानक देव से जुड़ा है। इस दिन भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का अंत किया था। गंगा में स्नान करने से पूरे वर्ष स्नान का फल मिलता है।


गंगा स्नान और गौदान की परंपरा

बनारस छोड़ने के बाद भी देव दीपावली हमारे लिए मित्र मिलन और गंगादर्शन का उत्सव बन गया। बचपन में मैं इस दिन गंगा में स्नान करता था। स्नान के बाद गौदान की परंपरा थी।


अब समय बदल गया है। घाटों पर अब न तो वही आस्था है और न ही कार्तिक पूर्णिमा की धार्मिकता। पंडे अब दक्षिणा लेते हैं, और पर्यटन ने इस पर्व को बाजार बना दिया है।


कार्तिक पूर्णिमा का वर्तमान स्वरूप

अब घाटों पर मठ और घर होटल में बदल गए हैं। जो कमरे सामान्य दिनों में सस्ते होते थे, वे अब महंगे हो गए हैं। मैं हर साल देव दीपावली पर गंगा तट पर आता हूं। गंगा का मतलब हमारे लिए जीवन की निरंतरता है। देव दीपावली का यह उत्सव हमारे लिए आस्था और जीवन का प्रतीक है।