काबा का तवाफ: इस्लाम में इसकी महत्ता और प्रक्रिया
काबा का तवाफ
काबा का तवाफ
इस्लाम में तवाफ की परिभाषा: इस्लाम में काबा शरीफ को अत्यंत पवित्र स्थान माना जाता है। दुनिया भर के मुसलमान हज और उमराह के लिए सऊदी अरब के मक्का शहर का दौरा करते हैं। हज इस्लाम के पांच अनिवार्य कर्तव्यों में से एक है, जिसे हर साल करना आवश्यक है। जबकि उमराह अनिवार्य नहीं है, दोनों में एक समानता है - काबा का तवाफ। सभी मुसलमान अपने आध्यात्मिक यात्रा के दौरान काबा का तवाफ करते हैं। आइए जानते हैं कि मुसलमान काबा का तवाफ क्यों करते हैं।
इस्लाम में तवाफ का अर्थ (Tawaf kya hai)
तवाफ का अर्थ अरबी शब्द ‘ताफा’ से है, जिसका अर्थ है किसी चीज के चारों ओर घूमना। हज और उमराह के दौरान, मुसलमान काबा शरीफ का सात बार घड़ी की विपरीत दिशा में चक्कर लगाते हैं। तवाफ की शुरुआत हजरे-असवद (काले पत्थर) से होती है। यह हज और उमराह के महत्वपूर्ण रिवाजों में से एक है, जिसके बिना ये तीर्थयात्राएं अधूरी मानी जाती हैं।
काबा का तवाफ क्यों किया जाता है? (Kabe ka Tawaf Kyon Karte Hain)
इस्लामिक विद्वान मुफ्ती सलाउद्दीन कासमी के अनुसार, मुसलमान काबा का तवाफ इसलिए करते हैं क्योंकि यह अल्लाह का आदेश है। अल्लाह के आदेश का पालन करना मुसलमानों का कर्तव्य है। इसलिए, काबा का तवाफ करना एक प्रकार की इबादत है, जिसका महत्व अल्लाह ही जानता है। मुसलमानों का विश्वास है कि अल्लाह के बताए मार्ग पर चलना ही सच्चा ईमान है।
कुरान में तवाफ का उल्लेख
इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान में तवाफ का उल्लेख कई बार किया गया है, जैसे सूरह अल-बकरह (2:125), सूरह अल-हज (22:26) और सूरह अल-हज (22:29)। इन आयतों में अल्लाह ने काबा का तवाफ करने का आदेश दिया है।
कुरान की सबसे लंबी सूरह अल-बकराह की आयत 125 में अल्लाह ने कहा है, (ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ) जब हमने खाना-ए-काबा को लोगों के सवाब और पनाह की जगह करार दी और हुक्म दिया गया कि इब्राहिम की (इस) जगह को नमाज की जगह बनाओ और पैगंबर इब्राहिम व इस्माइल से अहद व पैमान लिया कि मेरे (उस) घर को तवाफ, एतकाफ, रुकू और सजदा करने वालों के वास्ते साफ सुथरा रखो।
कुरान की सूरह अल हज की आयत 26 में अल्लाह ने कहा, और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब हमने इब्राहिम के जरिये से इब्राहिम के वास्ते खाना-ए-काबा की जगह जाहिर कर दी (और उनसे कहा कि) मेरा किसी चीज को शरीक न बनाना और मेरे घर को तवाफ, कयाम, रुकू और सुजूद करने वालों के लिए साफ सुथरा रखना।
इसके अलावा, कुरान की सूरह अल हज की आयत 29 में अल्लाह ने कहा, “लोगों को चाहिए कि अपनी-अपनी (बदन की) कसाफत दूर करें और कदीम (इबादत) खाना-ए-काबा का तवाफ करें यही हुक्म है।” इन आयतों से स्पष्ट होता है कि काबा का तवाफ पैगंबर इब्राहिम अलैहिस्सलाम के समय से चला आ रहा एक प्राचीन इबादत है।
तवाफ का बैतुल मामूर से संबंध
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, जब मुसलमान काबा का तवाफ करते हैं, उसी समय अल्लाह के फरिश्ते ‘बैत अल-मामूर’ का तवाफ करते हैं। बैतुल मामूर एक जन्नती घर है, जो सातवें आसमान पर स्थित है और काबा के ठीक ऊपर है। इसे “आबाद घर” भी कहा जाता है और फरिश्ते इसका तवाफ करते हैं, जैसे इंसान धरती पर काबा का तवाफ करते हैं। यह स्थान फरिश्तों के लिए इबादत का केंद्र माना जाता है।
तवाफ के प्रकार
इस्लाम में तवाफ के कई प्रकार होते हैं, जैसे:-
- तवाफ अल-कुदुम: हज या उमरा के लिए मक्का पहुंचने पर किया जाने वाला स्वागत तवाफ।
- तवाफ अल-इफादा: हज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा।
- तवाफ अल-वादा: विदाई तवाफ, जो हज या उमरा के अंत में किया जाता है।
- नफिल तवाफ: एक वैकल्पिक तवाफ।
तवाफ के तरीके
मर्द और औरतों के लिए तवाफ के कुछ अलग तरीके होते हैं। मर्दों के लिए रमल एक विशेष तरीका है, जिसमें वे तवाफ करते समय छोटे-छोटे कदम उठाते हैं। पहले तीन चक्कर मर्द रमल करते हैं, जबकि बाकी चार चक्कर सामान्य तरीके से पूरे करते हैं। महिलाओं के लिए रमल का पालन नहीं किया जाता; उन्हें सभी सात चक्कर सामान्य तरीके से पूरे करने होते हैं।
